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कविता
दर्पण - महेश कुमार हरियाणवी
सृजन तिथि : मार्च, 2023
देख ले जहान आज, कल कैसा होएगा। संचारित दुनिया में, अकेलापन रोएगा।। बच्चा कहीं और पले, माता कहीं और हो। कौन देगा ज्
मेरा मान - महेश कुमार हरियाणवी
सृजन तिथि : 2023
कोई सर पर उड़ता यान है, कोई कारीगर करवान है। कोई मिट्टी की पहचान है, कोई चौखट का अभिमान है। कोई शिक्षा में गुणवान है,
साला का महत्व - विजय कुमार सिन्हा
सृजन तिथि : 15 फ़रवरी, 2023
जिस घर में मेरा विवाह तय हुआ उस घर में पहले से था एक जमाई रिश्ते में था वह मेरा भाई। एक दिन मैंने उससे कहा– तुम तो अ
माँ - विजय कुमार सिन्हा
सृजन तिथि : 23 मार्च, 2023
शरीर के रोम-रोम में बह रहा है माँ का दूध लहू बनकर। यह एक ऐसा क़र्ज़ है जो कभी उतर नहीं सकता। बड़ी ही मीठी बोल है माँ।
रिश्तों की डोर - विजय कुमार सिन्हा
सृजन तिथि : 3 फ़रवरी, 2023
जन्म से मृत्यु तक, इंसान बँधा है रिश्तों की डोर में। रिश्तों की डोर बहुआयामी होती है। मात-पिता, भाई-बहन, दादा दादी
जीवन पल दो पल - विजय कुमार सिन्हा
सृजन तिथि : 5 जनवरी, 2023
ज़िंदगी में हर पल लिखा जाता है एक नया तराना, कभी सूरज की तपती धूप कभी चाँदनी की शीतलता। बीत रहा ज़िंदगी का हर पल आश म
कुल की शान - विजय कुमार सिन्हा
सृजन तिथि : 15 नवम्बर, 2022
जिन उँगलियों को पकड़कर पिता ने चलना सिखाया, उसी वक़्त वह अनकहे ही कह देता है– “जीवन के हर क्षण में तुम्हें प्यार करे
जीवन की मुस्कान है बेटी - विजय कुमार सिन्हा
सृजन तिथि : 4 मई, 2022
जीवन की मुस्कान पापा की पहचान ईश्वर द्वारा प्रदत्त वरदान कौन है वह? निश्चित तौर पर वह बेटी ही माँ के सो जाने पर ज
उम्मीद - विजय कुमार सिन्हा
सृजन तिथि : अज्ञात (10 नवम्बर, 2022 को संशोधित कर पूर्ण किया गया)
एक सुंदर भविष्य की आश में मात-पिता बड़े शहर में छोड़ने जाते हैं अपने बच्चों को। लगता है अपनी साँसे हीं छोड़े जा रह
पहचान - विजय कुमार सिन्हा
सृजन तिथि : 2022
माँ ने जन्म दिया बाबूजी ने मज़बूत हाथों का सहारा तब बनी मेरी पहली पहचान। गाँव से निकलकर शहर में आया चकाचौंध भरी रौ
वक़्त का परिंदा - जयप्रकाश 'जय बाबू'
सृजन तिथि : जनवरी, 2023
वक़्त का परिंदा आया, ना जाने किस देश से हो, यह सिखलाए सत्य ईमानदारी प्रेम का वेश हो। एक ही देश है, एक ही राग, एक ही गान ह
सुभाष चंद्र बोस - प्रवल राणा 'प्रवल'
सृजन तिथि : 20 जनवरी, 2022
23 जनवरी को कटक में जन्मे, सुनो सुभाष की जीवन गाथा। जानकी नाथ बोस थे पिताश्री, प्रभावती थीं सुभाष की माता। कटक से प्
एक ख़्वाब - प्रवीन 'पथिक'
सृजन तिथि : 2 जनवरी, 2023
जीवन की गोधूली में, अतृप्त आकांक्षाओं का स्वप्न; आशान्वित हो तैरता है। किसी संघर्ष की छाती पर, उठता ऑंखों में अंधड
बादलों में प्रिय चाँद छिपा है - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सृजन तिथि : 7 जनवरी, 2023
बादलों में प्रिय चाँद छिपा है, मस्ती उसमें आन पड़ा है। देख प्रिया रजनी अति भोली, नवप्रीता अब चन्द्रकला है। ख़ुशी
तुम्हें पाकर - प्रवीन 'पथिक'
सृजन तिथि : 7 नवम्बर, 2022
तुम्हें पाकर, लगता है ऐसे; जैसे जीवन की परिभाषा बदल गई है। अंतःकरण की रिक्तता, पूर्णता में परिवर्तित हो गई है। एक अ
मैंने तो कभी लिखा ही नहीं - मयंक द्विवेदी
सृजन तिथि : जनवरी, 2022
मैंने तो कभी लिखा ही नहीं, यह मन के उद्गार है। कुछ टीस रही होगी दिल में, ये इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। मैंने शब्दों क
देना है इनकम टैक्स - गणपत लाल उदय
सृजन तिथि : जनवरी, 2022
रह जाएगा सब कुछ एक दिन यही पर मेरे यारों, इस धन और दौलत को कोई इतना नहीं सवारों। देना है इनकम टैक्स प्रत्येक साल नि
कृष्णा के पार्थ - कर्मवीर सिरोवा
सृजन तिथि : 31 दिसम्बर, 2022
मेरा आशियाँ मुन्तज़िर हैं कि अब तो तिरी आँखें टिमटिमाए, ज़रा आओ, लोग उम्मीद से हैं कब यहॉं बिजली जगमगाए। काग़ज़ को बना
नववर्ष की पावन बेला - अजय कुमार 'अजेय'
सृजन तिथि : 1 जनवरी, 2023
नववर्ष की पावन बेला, शुभ संदेश सुनाती है। भगा तम अंतर्मन से, नव प्रभाती गाती है। उदित शिशिर लालिमा, धुँध परत हटाती
एक जीवन बीत गया - जयप्रकाश 'जय बाबू'
सृजन तिथि : 2022
यह वक़्त जो बीत गया सिर्फ़ वक़्त नहीं था सिर्फ़ एक साल बारह मास या दिन नहीं था एक जीवन था जो बीत गया। आपसी रिश्तों के त
नववर्ष तुम्हे मंगलमय हो - प्रवल राणा 'प्रवल'
सृजन तिथि : 30 दिसम्बर, 2022
नववर्ष तुम्हे मंगलमय हो, जीवन भी शुभ मंगलमय हो। ऊर्जा से प्रकाशित नववर्ष रहे, आगामी जीवन में उत्कर्ष रहे। जो संत
स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष! - आशीष कुमार
सृजन तिथि : 30 दिसम्बर, 2022
पलकें बिछाए खड़े हम सभी, दिलों में है हमारे अपार हर्ष। शुभ मंगल की कामना संग, स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष! रसधार
दिसम्बर के महीने में - कर्मवीर सिरोवा
सृजन तिथि : 28 दिसम्बर, 2022
याद रहेगी सर्द मौसम की ये सरगोशियाँ जो कानों पर छोड़ रही हैं दस्तकें, फिर भी क्यूँ इक सूरज चाँद से मिलकर पिघल जाता है
हे क़लम! तुम्हें है नमन सदा - राघवेंद्र सिंह
सृजन तिथि : 28 दिसम्बर, 2022
हे क़लम! तुम्हें है नमन सदा, कुछ आज परिश्रम कर जाओ। एक नई प्रेरणा लिखकर तुम, उद्गार हृदय में भर जाओ। हर पंक्ति में नव
प्यास - सुरेन्द्र प्रजापति
सृजन तिथि : दिसम्बर, 2022
ज़िंदगी के रास्ते पर चलते हुए अचानक एक दिन प्रतिरोध आता है विपतियों का पहाड़ टूट पड़ता है ऐसे समय में यह निश्चय कर पान
काश कि बचपना होता - विनय विश्वा
सृजन तिथि : 31 जनवरी, 2022
एक वह गोली थी जो बचपन का हिस्सा हुआ करती थी एक यह गोली है जो शासन की बंदूक से निहत्थे को छलनी कर देती है कितना फ़र्क़
कर्मवीर बनता विजेता कर्मपथ - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सृजन तिथि : 18 दिसम्बर, 2022
रावण ब्राह्मण ही नहीं वेदज्ञ था, महाकर्मवीर, पर अहंकारत्व था। वैज्ञानिक दार्शनिक बलवन्त था, विश्वविजेता, पर खल श
भाग्य - रमेश चंद्र बाजपेयी
सृजन तिथि : दिसम्बर, 2022
हे मानुष! भाग्य को कोस कर, विकास को अवरोध मत कर। श्रम बिंदु से लिख दे ललाट को, क्योंकि तू देव नहीं है नर। इंसान के स
वह तुम्हीं थी - प्रवीन 'पथिक'
सृजन तिथि : 1 नवम्बर, 2022
तुम्हारा यूॅं मिलना; जैसे मुरझाते पौधों की, धमनियों में प्रेम जल का प्रवाह होना; जिसका पल्लवन ये सुंदर पुष्प है।
हे निशा निमंत्रण के द्योतक - राघवेंद्र सिंह
सृजन तिथि : 14 नवम्बर, 2022
हे अरुणोदय के प्रथम अंशु! हे निशा निमंत्रण के द्योतक! हे मृदुभावों के कन्त हार! हे दिग दिगंत के विद्योतक! तुम प्रे
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