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लघुकथा

साथ-साथ हैं
सुषमा दीक्षित शुक्ला
दीपू एक ऐसा बालक था जो सेठ मानिकचन्द अग्रवाल को वर्षो पूर्व सड़क पर लावारिस और विकल अवस्था रोता बिलखता मिला था। तब उ
उत्तरदायित्व
डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
माहिष्मती गाँव में ललिता देवी नामक एक सुसभ्य सुसंस्कृत महिला रहती थी। उनके पति गौरी शंकर एक पढ़े लिखे और निहायत भद्
काश मैं मोबाइल होती
अंकुर सिंह
"आज काम बहुत था यार, बुरी तरह से थक गया हूँ।" सोफ़ा पर अपना बैग रखते हुए अजीत ने कहा। "अजीत, जल्दी से फ्रेश हो जाओ तुम, तब
बोरिया-बिस्तर
अविनाश ब्यौहार
वह शहर में नया-नया आया था। मैंने यह समझकर घर में शरण दे दी कि वह मित्र का लड़का है। जॉब तलाशने पर उसे इस शहर में जॉब मि
धन्य
अविनाश ब्यौहार
प्रातिभ की सर्विस लगे जुमा-जुमा एक साल बीता था कि उसके माता पिता को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। वे अपनी जात बिरा
तापत्रय
अविनाश ब्यौहार
सरकारी कार्यालय यानि सार्वजनिक स्थल। उसमें अप्रतिम सौंदर्य था। वह आशुलिपिक थी। वहाँ तरह तरह के लोग आते थे। कुछ की
सज़ा
अविनाश ब्यौहार
उसने सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया। काॅल लेटर मिलने के पश्चात उसने परीक्षा मेरिट मे पास की। उसे नियुक्ति प्रमाण प
अटूट बंधन
अविनाश ब्यौहार
पति-पत्नी का रिश्ता सामंजस्य की डोर से बंधा होता है। उनमें अक्सर तूँ-तूँ मैं-मैं, नोंक-झोंक होती थी। लगता था सारा पा
काल्पनिक समाज
अविनाश ब्यौहार
सारी कालोनी के लोग यह जानते थे कि वह परिवार बहुत ही सुसभ्य और सुसंस्कृत है। यह सब देखकर उनके परिवार के प्रति मेरी ज
मित्र
शमा परवीन
"अरे तुम यहाँ बैठे हो मित्र! मैं तुम से मिलने तुम्हारे घर गया था।" "पढ़ाई करने के लिए यही जगह अच्छी लगती है। यहाँ मैं
आँखों का तारा
अजय कुमार 'अजेय'
पूस की कड़कड़ाती ठंडी काली स्याह रात में दूर एक बिंदु टिमटिमा रहा था। कुछ सूझ न रहा था। मैं अंदाज़े से रोशनी की ओर बढ
मानसिकता
सुधीर श्रीवास्तव
पद्मा इन दिनों बहुत परेशान थी। पढ़ाई के साथ साथ साहित्य में अपना अलग मुक़ाम बनाने का सपना रंग ला रहा था। स्थानीय से ले
ख़ामोशी
सुधीर श्रीवास्तव
आज आप सुबह से बहुत चुपचाप हैं। क्या बात है? तबियत तो ठीक है न? रमा ने अपने पति राज से पूछा। राज बोले- नहीं लखन की माँ। ब
दोष किसका?
सुधीर श्रीवास्तव
आज रमा को अपनी भूल का बहुत पछतावा हो रहा था।आज रह रह कर कर उसे वह दिन याद आ रहा था, जब उसने माँ-बाप की चिंता में और पति क
अंतर्द्वंद
सुधीर श्रीवास्तव
लंबी प्रतीक्षा के बाद आख़िर वो दिन आ ही गया और उसने सुंदर सी गोल मटोल बेटी को जन्मदिन दिया। सब बहुत ख़ुश थे। यहाँ तक की
आपके लिए
सुधीर श्रीवास्तव
रीमा ससुराल से विदा होकर पहली बार मायके आई। मांँ बाप भाई बहन सब बहुत ख़ुश थे। हों भी क्यों न? अपनी सामर्थ्य से ऊपर जाक
पाँच अँगुलियाँ
डॉ॰ सत्यनारायण चौधरी 'सत्या'
कहावत है पाँचो अँगुलियाँ बराबर नहीं होती। इसी बात पर सभी अँगुलियों में विवाद हो गया। हर एक अँगुली अपनी उपयोगिता गि
पर्दे के पीछे
सीमा 'वर्णिका'
शास्त्री मैदान खचाखच भरा था हिंदी पर परिचर्चा चल रही थी। "हिंदी हमारी मातृभाषा है। इसका भाव सौंदर्य अप्रतिम है," वि
विद्यालय जाना है
शमा परवीन
एक प्यारा सा गाँव था। उस गाँव मे प्यारा सा विद्यालय था। उस विद्यालय मे सोनू नाम का एक बालक पढ़ता था। वह प्रतिदिन वि
एक बच्चे का मन
संजय राजभर 'समित'
"माँ क्या कर रही हो" "कुछ नही बेटा, दादा तुम्हारे बूढ़े हो गए हैं और आज कुछ मेहमान आ रहे हैं, तुम्हारा जन्मदिन है बेटा।
कामयाबी का परिणाम
विपिन दिलवरिया
एक छोटे से गाँव की बात है जहाँ चरनदास का परिवार रहता था जिसके दो बेटे राम और श्याम थे। राम और श्याम की माता कमला देवी
कोख का बँटवारा
अंकुर सिंह
रामनारायण के दो बेटों का नाम रमेश और सुरेश है। युवा अवस्था में रामनारायण के मृत्यु होने के बाद उनकी पत्नी रमादेवी
सदा सुखी रहो बेटा
सुषमा दीक्षित शुक्ला
रिटायर्ड इनकम टैक्स ऑफिसर कृष्ण नारायण पांडे आज अपनी आलीशान कोठी में बहुत मायूसी महसूस कर रहे थे, क्योंकि उनकी दो
संविदा शिक्षक का दर्द
शमा परवीन
मास्टर साहब हमारा बक़ाया कब दोगे? भाई दे दूँगा तनख्वाह आने दो। अगर आप हमारे मुन्ने को कुछ दिन पढ़ाये ना होते तो कसम स
निरपेक्ष
ममता शर्मा 'अंचल'
अब क्या लिखा है पत्र में तेरी मैम ने? ओह! पत्र नहीं मैसेज में? पत्रों के ज़माने अब कहाँ रहे! मैसेज आते-जाते हैं अब तो मोब

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