पद्य
कविता
गीत
नवगीत
लोकगीत
ग़ज़ल
सजल
नज़्म
मुक्तक
रुबाई
हाइकु
क्षणिका
छंद
दोहा छंद
चौपाई छंद
कुण्डलिया छंद
गीतिका छंद
सवैया छंद
पंचचामर छंद
घनाक्षरी छंद
हरिगीतिका छंद
त्रिभंगी छंद
सरसी छंद
चर्चरी छंद
तपी छंद
शृंगार छंद
लावणी छंद
विजात छंद
रोला छंद
ताटंक छंद
विधाता छंद
आल्हा छंद
तोटक छंद
सायली छंद
गद्य
कहानी
लघुकथा
लेख
आलेख
निबंध
संस्मरण
देशभक्ति
/
सुविचार
/
प्रेम
/
प्रेरक
/
माँ
/
स्त्री
/
जीवन
ग़ज़ल
लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं
अली सरदार जाफ़री
लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं, हम कफ़-ए-दस्त-ए-ख़िज़ाँ पर भी हिना माँगते हैं। हम-नशीं सादा-दिली-हा-ए-तमन्ना
वो जो थोड़ी मुश्किलों से हो के आजिज़ मर गए
शतदल
वो जो थोड़ी मुश्किलों से हो के आजिज़ मर गए, उनसे क्या उम्मीद थी और देखिए क्या कर गए? उस इमारत को भला पुख़्ता इमारत क
जिस सिम्त नज़र जाए, वो मुझको नज़र आए
शतदल
जिस सिम्त नज़र जाए, वो मुझको नज़र आए, हसरत है कि अब यूँ ही, ये उम्र गुज़र जाए। आसार हैं बारिश के, तूफ़ाँ का अंदेशा है,
अंत्यज कोरी पासी हैं हम
अदम गोंडवी
अंत्यज कोरी पासी हैं हम, क्यूँ कर भारतवासी हैं हम। अपने को क्यों वेद में खोजें, क्या दर्पण विश्वासी हैं हम। छाय
घर पे ठंडे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है
अदम गोंडवी
घर पे ठंडे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है, बताओं कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है। भटकती है हमारे गाँव में गूँगी भि
ये समझते हैं खिले हैं तो फिर बिखरना है
अदम गोंडवी
ये समझते हैं खिले हैं तो फिर बिखरना है, पर अपने ख़ून से गुलशन में रंग भरना है। उससे मिलने को कई मोड़ से गुज़रना है, अभी
वल्लाह किस जुनूँ के सताए हुए हैं लोग
अदम गोंडवी
वल्लाह किस जुनूँ के सताए हुए हैं लोग, हमसाये के लहू में नहाए हुए हैं लोग। ये तिश्नगी गवाह है घायल है इनकी रूह, चेह
पहले जनाब कोई शिगूफ़ा उछाल दो
अदम गोंडवी
पहले जनाब कोई शिगूफ़ा उछाल दो, फिर कर का बोझ की गर्दन पर डाल दो। रिश्वत को हक़ समझ के जहाँ ले रहे हों लोग, है और कोई मु
जितने हरामख़ाेर थे क़ुर्ब-ओ-जवार में
अदम गोंडवी
जितने हरामख़ाेर थे क़ुर्ब-ओ-जवार में, परधान बनके आ गए अगली क़तार में। दीवार फाँदने में यूँ जिनका रिकॉर्ड था, वे चौधर
तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
अदम गोंडवी
तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आँकड़ें झूठे हैं ये दावा किताबी है। उधर जम्हूरियत ढोल पीटे जा र
वेद में जिनका हवाला हाशिए पर भी नहीं
अदम गोंडवी
वेद में जिनका हवाला हाशिए पर भी नहीं, वे अभागे आस्था-विश्वास लेकर क्या करें। लोकरंजन हो जहाँ शंबूक वध की आड़ में, उ
ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी
अदम गोंडवी
ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी, फिर कहाँ से बीच में मस्जिद व मंदिर आ गए। जिनके चेहरे पर लिखी है जेल की ऊँची फ़सी
ज़िंदगी दुश्वार है उफ़ ये गरानी देखिए
अदम गोंडवी
ज़िंदगी दुश्वार है उफ़ ये गरानी देखिए, और फिर नेताओं की शोला बयानी देखिए। भीख का लेकर कटोरा चाँद पर जाने की ज़िद, ये
सारा आलम गोश-बर-आवाज़ है
असरार-उल-हक़ मजाज़
सारा आलम गोश-बर-आवाज़ है, आज किन हाथों में दिल का साज़ है। तू जहाँ है ज़मज़मा-पर्दाज़ है, दिल जहाँ है गोश-बर-आवाज़ ह
ज़ेहन में चराग़ाँ है रूह जगमगाई है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ज़ेहन में चराग़ाँ है रूह जगमगाई है, शाम के धुँदलकों में याद तेरी आई है। कल ख़िज़ाँ में दीवाने बे-नियाज़-ए-दामन थे,
चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है, जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है। उलझन घुटन हिरास तपिश कर्ब इंतिशार, वो भी
ऐसी तड़प अता हो के दुनिया मिसाल दे
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ऐसी तड़प अता हो के दुनिया मिसाल दे, इक मौज-ए-तह-नशीं हूँ मुझे भी उछाल दे। बे-चेहरगी की भीड़ में गुम है मिरा वजूद, मै
देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा
फ़राग़ रोहवी
देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा, ख़ुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा। उस का जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा, अपना सा
कभी हरीफ़ कभी हम-नवा हमीं ठहरे
फ़राग़ रोहवी
कभी हरीफ़ कभी हम-नवा हमीं ठहरे, कि दुश्मनों के भी मुश्किल-कुशा हमीं ठहरे। किसी ने राह का पत्थर हमीं को ठहराया, ये
कितने अरमाँ पिघल के आते हैं
रेखा राजवंशी
कितने अरमाँ पिघल के आते हैं, लोग चेहरे बदल के आते हैं। अब मिरे दोस्त भी रक़ीबों से, जब भी आते सँभल के आते हैं। जब
रात फिर बोलती रहीं आँखें
रेखा राजवंशी
रात फिर बोलती रहीं आँखें, राज़ सब खोलती रहीं आँखें। किस तरह ए'तिबार कर पाते, हर तरफ़ डोलती रहीं आँखें। मेरे कपड़
अश्कों की बरसातें ले कर लोग मिले
रेखा राजवंशी
अश्कों की बरसातें ले कर लोग मिले, ग़म में भीगी रातें ले कर लोग मिले। पूरी एक कहानी कैसे बन पाती, क़तरा क़तरा बातें
आज मैं फिर से माहताब बनूँ
रेखा राजवंशी
आज मैं फिर से माहताब बनूँ, तू मुझे पढ़ तिरी किताब बनूँ। शबनमी रात की ख़ुमारी में, तू मुझे पी तिरी शराब बनूँ। पूछ
मुझ पे इल्ज़ाम लगाते क्यों हो
रेखा राजवंशी
मुझ पे इल्ज़ाम लगाते क्यों हो, बात पे बात बनाते क्यों हो। ज़ख़्म पिछले न भरे अब तक फिर, इक नई चोट लगाते क्यों हो।
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
निदा फ़ाज़ली
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है। अच्छा सा कोई मौसम तन्हा सा कोई आलम,
जिसे देखते ही ख़ुमारी लगे
निदा फ़ाज़ली
जिसे देखते ही ख़ुमारी लगे, उसे उम्र सारी हमारी लगे। उजाला सा है उस के चारों तरफ़, वो नाज़ुक बदन पाँव भारी लगे। व
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
निदा फ़ाज़ली
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा, वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा। इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझ
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
निदा फ़ाज़ली
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है, इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है। उन से नज़रें क्या मिलीं र
दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए
निदा फ़ाज़ली
दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए, जब तक न साँस टूटे जिए जाना चाहिए। यूँ तो क़दम क़दम पे है दीवार सामने, कोई न हो तो
दो चार गाम राह को हमवार देखना
निदा फ़ाज़ली
दो चार गाम राह को हमवार देखना, फिर हर क़दम पे इक नई दीवार देखना। आँखों की रौशनी से है हर संग आईना, हर आइने में ख़ुद
और देखे..
रचनाएँ खोजें
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
हटाएँ
खोजें