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नवगीत

छाया त्रासन है
अविनाश ब्यौहार
नहीं फटकता अँधकार पहरुए हैं उजाले के। अँधकार का नाश करेंगे दिए दिवाली के। हथकड़ियाँ हाँथों में होंगी किसी मवाल
मंज़ूर नहीं
रमेश रंजक
बहुत अच्छी लगती हैं मेड़ें खेतों की सिंचाई के लिए कितनी प्यारी लगती हैं कुर्सियाँ भलाई के लिए। बहुत मौजूँ लगती ह
कह रहीं हवाएँ
अविनाश ब्यौहार
शहर की व्यथाएँ कह रहीं हवाएँ। लग रहा ऐसे पत्थर के लोग हैं। कर्मों के भोग भोग रहे भोग हैं।। गले में अटक गईं जैसे स
आग की कहानी
कुँअर बेचैन
धुएँ से सुनी है हमने आग की कहानी! आग की कहानी जो है सदियों पुरानी! पत्थर के घर में जन्मी जंगल ने पाली जल ने जलन अप
प्रीति में संदेह कैसा?
कुँअर बेचैन
प्रीति में संदेह कैसा? यदि रहे संदेह, तो फिर— प्रीति कैसी, नेह कैसा? प्रीति में संदेह कैसा! ज्योति पर जलते शलभ ने
बादल मगन हो गए
अविनाश ब्यौहार
बरसता पानी ख़ूब, बादल मगन हो गए। हैं कर रहीं लहरें उत्पात। पावस की हुई बहुत बिसात॥ उजड़ जाए है ऊब, बादल मगन हो गए।
नेह में संदेह होगा
कुँअर बेचैन
देह आकर्षण बनी तो नेह में संदेह होगा! देह को सौंदर्य सींचे और सबकी दृष्टि खींचे दीखती हो देह सम्मुख आँख खोले, आँ
अँधियारी रातें
अविनाश ब्यौहार
अँधियारी रातें हैं करती रहीं रुदाली। चाँद तारे बहुत ही ग़मगीन दिखे। बात करें भारत की तो चीन दिखे।। छिछोरी हरकत
मधुऋतु में लुटा रहा प्यार
अविनाश ब्यौहार
पुष्पों का ऋतु से अभिसार हो रहा। आज कई रंगों मे खिले कचनार। है ढाक मधुऋतु में लुटा रहा प्यार।। बगीचा- फूल का ब
लगे चटोरे दिन
अविनाश ब्यौहार
मैंने देखा मैंने पाया लगे चटोरे दिन। रबड़ी सी धूप लगती कलाकंद सी छाँव। है शहर की सरहद में उकड़ू बैठा गाँव।। दुर
कटी-कटी है
अविनाश ब्यौहार
एक है माँ कितने बेटों के बीच बँटी है। पिता गए तो सारा घर ही टूट गया है। बुरा समय ख़ुशियों को आकर कूट गया है।। थी म
धुँधलके में
अविनाश ब्यौहार
धूप की चादर बिछी हुई है दिन के पलके में। झूम-झूम के पावस बिल्कुल न बरसा। ताल-झरना-खेत लगा जल को तरसा।। कोई रात के
होने लगी झमाझम बारिश
अविनाश ब्यौहार
होने लगी झमाझम बारिश नदी है उफान पर। बिजली कड़क रही है बादल काले-काले हैं। कुछ नहीं है खंडहर में, मकड़ी के जाले है
मछली बोली जल ही जीवन
अविनाश ब्यौहार
मछली बोली जल ही जीवन समझें औ समझाएँ। हो रहा जल का दुरुपयोग था अकूत भंडार। सपने सेना उज्जवल भविष्य के है बेकार।।
ऋतुएँ बदल रहीं हैं
अविनाश ब्यौहार
हवाओं के मुख से लपटें निकल रहीं हैं। किनारों से दूर नदी सूखकर- काँटा हुई है। जलती धूप पत्तों के गाल पर- चाँटा हुई
राम चरित निराला
अविनाश ब्यौहार
दुनिया में लगा है राम चरित निराला। भ्रात प्रेम के अलावा पितृ भक्ति है। जानकी-सीता आलौकिक शक्ति है।। द्वापर में
प्यास वाले दिन
अविनाश ब्यौहार
लगे सताने झोपड़ियों को भूख औ प्यास वाले दिन। धूप है दिवस को कचोटने लगी। जब-तब लू हवा को टोंकने लगी।। जीवन में जब
हिंदी सुघड़ सलोनी है
अविनाश ब्यौहार
हिंदी सुघड़ सलोनी है! इसमें लालित्य भरा! मीठा साहित्य भरा! हिंदी हुई मघोनी है! है संस्कृति का गहना! निर्झरिणी
वासंती गहने
अविनाश ब्यौहार
अमराई ने पहने वासंती गहने। महुआरी ले रही बलैयाँ। चम्पा सी महकी हैं छैयाँ। पुरवाई बार बार दे रही उलहने। टेसु श
होली के सातों रंग जीवन में बिखर जाएँ
अविनाश ब्यौहार
हैं टेसू, सेमल और आम निखर-निखर जाएँ। डूब गया ख़ुद में तन्हा है महानगर। लोगों की पीड़ा की मिलती नहीं ख़बर।। होली के
झूठे हैं सब लोग यहाँ
अविनाश ब्यौहार
झूठे हैं सब लोग यहाँ दुनिया भी ये झूठी है। मछली सागर की अभी गहराई नाप रही। हाईवे को देखकर पगडंडी काँप रही।। पहनी
मैं अभी तक भी नदी हूँ
कुँअर बेचैन
मैं अभी तक भी नदी हूँ धूप ने मुझको जलाया धूल फेंकी आँधियों ने कूल ने आँखें तरेरीं आग दी भरकर दियों ने चीर, खिंचक
ये भरी आँखें तुम्हारी
कुँअर बेचैन
जागती हैं रात भर क्यों ये भरी आँखें तुम्हारी! क्या कहीं दिन में तड़पता स्वप्न देखा सुई जैसी चुभ गई क्या हस्त-र
स्वागतम् ऋतुराज का
अविनाश ब्यौहार
ठंड की ऋतु का अवसान हो गया। सर्द हवा, कुहरा है। जाड़ा तो दुहरा है।। बस कुछ दिन का मेहमान हो गया। स्वागतम् ऋतुरा
महाविनाश
अविनाश ब्यौहार
उस देश के माथे पर है लिखा हुआ महाविनाश। बम-मिसाइलों से भू-भाग उठा थर्रा। मृतप्राय हुआ जमीन का जर्रा-जर्रा।। समय
भोर हुई
अविनाश ब्यौहार
पूरब में दिनकर मुस्काया, भोर हुई! आँगन में गौरइया चहकी! चलती हुई हवा है महकी!! खेतों ने हल गले लगाया, भोर हुई! पग
रंगों में डूब गई होली
अविनाश ब्यौहार
रंगों में डूब गई होली! हवाओं में उड़ रहा गुलाल! रंगोत्सव में धुलता मलाल!! नशीली-नशीली है बोली! फूले टेसू फूले कन
पुलवामा के शहीद
अविनाश ब्यौहार
पुलवामा के शहीद थे देश की आँख के तारे! चमनबंदी, पल्लवन है लगन! आँसू करते हैं शत शत नमन!! सिर पर कफ़न हमेशा बाँधे लगत
फगुनाई ठौर है
अविनाश ब्यौहार
फागुन के रंगों में एक रंग और है! रंग है मधुमास का! हताशा में आस का!! उड़ती हवाइयों में, रंग है परिहास का!! गंध का हि
फूलते पलाश
अविनाश ब्यौहार
फूलते पलाश! चैती हवा! अक्षत जवा!! हर्षित आकाश! पकते बेर! फ़सलें हेर!! चमकता उजास! झूमते वन! उमंगी तन!! अंकुरित हु

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