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आभार अर्धांगिनी (कविता)

हम बस प्रिय! प्रिय नहीं,
हम क़दम-क़दम के साथी हैं।
हम बस दो जिस्म नहीं,
हम जन्मों-जन्म के साथी है।।

तुम ही हो मेरी सब ख़ुशियाँ,
तुम्हारी बाहों में है मेरी दुनियाँ।
सिर रख गोद में तेरे मैं सोऊँ,
संग तेरे दिखे ख़ुशियों की बगियाँ।।

तेरे उलझे केशों को सुलझाऊँ,
तेरे नयनों में ख़ुद समा जाऊँ।
जीवन में दो रोटी कमा लाऊँ,
पहली मैं तुझे खिलाऊँ,
दूसरी फिर मैं ख़ुद खाऊ।।

पैसों से है हम निर्धन प्रिय,
तिजोरी में रखते तस्वीर तेरी।
ऊँचे महलों के हम नहीं वासी,
तेरे नयन है, मेरे सुखद आवासीय।।

दिलों में है बस प्यार तुम्हारा,
तुम हो मेरे जीवन का सहारा।
इक चाहत है इस जीवन में,
पग-पग पर हो साथ तुम्हारा।।

ऑफ़िस से जब थका आता हूँ,
देख तुम्हे मैं मुस्कराता हूँ।
तुम्हारे हाथों से बने चाय से,
ख़ुद को मैं तरोताज़ा पाता हूँ।।

बच्चा मेरा रातों में तंग करता,
मैं अपनी निद्रा में मस्त रहता।
ख़ुद जगकर तुम उसे सुलाती,
सुबह फिर मधुर मुस्कान बिखेरती।।

हर पल तुम रहोगी मेरा सहारा,
सातों जन्मों तक होगा साथ हमारा।
हर एक परिस्थिति में तुम साथ रहना,
बुढ़ापे की तू बुढ़िया मेरी, मैं बुड्डा तुम्हारा।।

छोड़कर अपना घर, साथ मेरे ब्याह तुम आई,
सुख-दुख दोनों में, साथ तुम मेरे बिताई।
कैसे करू मैं प्रिये अभार तुम्हारा?
जो जीवन के हर रश्म तुमने निभाई।।

ना जाने कितने बसंतो का हूँ ऋणी तुम्हारा,
इस जीवन को बस है अब तुम्हारा सहारा।।
छोड़ ना अर्ध-मार्ग में तुम हमको जाना,
तुम्हारे बाद कोई नहीं दूजा हमारा।


रचनाकार : अंकुर सिंह
लेखन तिथि : दिसम्बर, 2020
            

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