मंडराते खतरे
ज्यों चील
औ कौआ!
कतर ब्योंत है
आपसदारी में!
पूरे मौक़े हैं
रंगदारी में!!
ज़हरीले नाते हैं
मानो अकौआ!
छीना झपटी
फ़ैशन हो गई!
मेल मिलाप
नागफनी बो गई!!
आदमी लगने लगा
है कोई हौआ!
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें