दुर्गम दुखदाई राह बहुत,
अतिजोरों से है हवा चली,
घनघोर घटा छाई अम्बर,
विकराल जलद सौन्दर्य घड़ी।
है कठिन मार्ग विस्तार बड़ा,
गढ्ढे गह्वर सूखी झाड़ी,
बन पीत गात्र इन पत्तों के,
विपरीत दशा लखि मन भारी।
है प्रेम परीक्षा आन पड़ी,
दिल चाह मिलन परवान चढ़ी,
हो स्मृतिपटल लम्हें अविचल,
हे कमलनैन कचनार कली।
गलहार बने एकान्त सजन
विश्वास हृदय अहसास करें,
शनैः शनैः रस प्रिय पान सुधा,
मिल मुदित मना अनुराग करें।
निश्चल कोमल मनुहार प्रिये,
मुख चारुतमा चन्द्रहार हिये,
लता लवंगी कृश मधुमासी,
मिल प्रेमयुगल अभिसार प्रिये।
नवजीवन की माला गूँथें,
अन्तर्मन भाव सलिल सींचें,
बन हरित भरित प्रिय धीर ललित,
हास भाष मृदुल उदात्त बनें।
विपरीत प्रकृति में प्रीत मुखर,
हर्षित विलसित अवसाद ज़हर,
देंखें महकें मन सूर्यमुखी,
आओ जोड़े दिल तार सखी।।
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