आसमाँ क्यों जल रहा है भाइयो,
झूठ सच को छल रहा है भाइयो।
जो समय बेकार सा लगता रहा,
वो समय अब ढल रहा है भाइयो।
चाँद भी शीतल रहा करता अगर,
चाँद लेकिन गल रहा है भाइयो।
बात ऐसी कर गए हैं आज वे,
शब्द उनका खल रहा है भाइयो।
पेड़ पत्थर खा रहे हैं देख लो,
और फिर भी फल रहा है भाइयो।
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