अब ना सखी मोहे सावन सुहाए,
अब ना सखी मोरा मन मचलाए।
अब तो सही मोहे पिया बिसराए,
अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाए।
अब नहीं करते पिया मीठी बतियाँ,
अब नहीं सावन गाती हैं सखियाँ।
कोई उमंग सखी मन में ना आए,
अब तो सखी मोहे पिया बिसराए।
अब ना सखी मोहे सावन सुहाए॥
बिरहा की अग्नी में हियरा जले है,
कब से ना उनसे नयना मिले हैं।
अब ना पिया मोहे गरवा लगाए,
अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाए।
अब ना सखी मोहे सावन सुहाए॥
मोरे पिया का ऐसा था मुखड़ा,
धरती पे आया हो चाँद का टुकड़ा।
जैसे अनंगों ने रूप सजाए,
अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाए।
अब ना तरंगो ने दामन भिगाए,
अब ना सखी मोहे सावन सुहाए।
अब तो सखी मोहे पिया बिसराए॥
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