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आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (कविता)

दौलतपुर ग्राम रायबरेली जनपद मे
पाँच मई अठारह सौ चौसठ में
पंडित रामसहाय द्विवेदी के पुत्र रुप में
महाबीर प्रसाद द्विवेदी जन्मे थे।
दीनहीन थी घर की दशा
समुचित शिक्षा नहीं हो सकी,
संस्कृत पढ़ते रहे घर रहकर
फिर रायबरेली, उन्नाव, फतेहपुर में
आख़िर पढ़ने जा पाए,
घर की हालत के कारण
पढा़ई से फिर दूर हो गए।
गए पढ़ाई छोड़ बंबई
बाइस रुपये मासिक पर
रेलवे जीआईपी में नौकरी किए।
मेहनत ईमानदारी से अपने
डेढ़ सौ रुपये मासिक वेतन संग
हेड क्लर्क पद पर पदोन्नति पा गए।
अंग्रेजी मराठी संस्कृत का नौकरी संग
भरपूर ज्ञान प्राप्त किया,
उर्दू और गुजराती का भी
जमकर ख़ूब अभ्यास किया।
बंबई से झाँसी स्थानांतरण हो गया
अधिकारी से विवाद के कारण
स्वाभिमान की ख़ातिर महाबीर ने
नौकरी से त्याग पत्र दे दिया,
फिर जीवन भर साहित्य सेवा में
ख़ुद को महाबीर ने समर्पित किया।
युग प्रवर्तक के रूप में
द्विवेदी जी को मान मिला,
प्रभावी व्यक्तित्व कृतित्व का
युगीन साहित्यकारों पर
गहरा बहुत प्रभाव पड़ा।
वह युग हिंदी साहित्य में
द्विवेदी युग से प्रसिद्ध हुआ,
इक्कीस दिसंबर उन्नीस सौ अड़तीस में
साहित्य का यह महापुरोधा
आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी जी का
धरा छोड़ परलोक गमन हुआ,
हिंदी साहित्य का चमकता सितारा
जगत में नाम अमर कर गया।


            

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