रवि की प्रथम रश्मि,
रश्मिकर, कर नव सृष्टि।
उठा, जगा पुरुषत्व को,
दुर्बलता पर कर, अग्निवृष्टि।
सामने हो मृग मरीचिका,
खींच हाथ में प्रत्यञ्चा,
चीर वक्ष, ले अवतार नरसिंह का,
आय समय अब अंत का।
और हो ,चहुँओर हो,
युद्ध अब घनघोर हो,
त्रिनेत्र बन खोल दृष्टि,
दुर्बलता पर कर अग्निवृष्टि।
बार-बार की दुर्गति,
सहन नहीं, अब क्षम्य नहीं,
रूप विकराल हो, महाकाल हो,
काल का भी काल बन,
विष का भी पान कर,
विजय गान ही हो संतृप्ति।
उठा जगा पुरुषत्व को,
दुर्बलता पर कर अग्निवृष्टि।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें