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अहिंसा के पुजारी (कविता)

भूल गए सब पाठ अहिंसा,
पल पल हिंसक हो जाते हैं।
आगे निकलने की जल्दी है,
ग़लत राह पर बढ़ जाते हैं।

भूल गए बापू गांधी को,
जो सत्य अहिंसा मार्ग चले।
संस्कृति जाने कहाँ खो गई,
नाथू बंदूक चलाते हैं।

नोटों पर गांधी बैठे हैं,
शौचालय नीचे खपर दबे।
गांधी जयन्ती के आते ही,
स्वच्छता शपथ दिलाते हैं।

अहिंसा परमोधर्म सीख थी,
कैसे हिंसा में बदल गई।
जीव जन्तु की बिसात क्या है,
भाई को मार गिराते हैं।

बापू की लकुटी में दम थी,
तोपों के आगे डटी रही।
उसकी ताक़त के बल पर ही,
आज़ादी पर्व मनाते हैं।

रघुपति राघव राजाराम,
अध्यात्म मंत्र सिखाया था।
जाने कैसे बदल गया ये,
तकनीकी विकास आते हैं।

स्वतंत्र भारत में मौज़ हुई,
नेता गुर्गे सब फूल गए।
जनता की हालत कब बदली,
राजतंत्र गाथा गाते हैं।

चाहे कोई युग आ जाए,
जनता को तो पिसना ही है।
पाठ अहिंसा जन पढ़ लेंगे,
भ्रष्टों को नहीं सिखाते हैं।

नई सदी के आते-आते,
गांधी आदर्श कहाँ खो गए।
दिलों से "श्री" ग़ायब हो गए,
सिर्फ़ नोटों पर छप जाते हैं।


लेखन तिथि : 1 अक्टूबर, 2021
            

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