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ऐसे थे गाँधी (कविता) Editior's Choice

ऐसे थे गाँधी, कैसे थे गाँधी?
जीवन के जिस रूप में देखो, वैसे थे गाँधी।
जनता के साथ में, जनता के पास में,
उनके सुख दुःख को जीते थे गाँधी,
ऐसे थे गाँधी।
श्रीकृष्ण की गीता के, श्रीराम की सीता के,
विहित जीवन दर्शन को, गाकर जीते थे गाँधी,
बस, ऐसे थे गाँधी।
स्वाधीनता के भावसमन्वित जनता को साथ लिए,
सत्य,अहिंसा के महामन्त्र पथ पर चलते थे गाँधी,
बस, ऐसे थे गाँधी।
गोरों के शोषण से, आतंकित हुए शोषित जन,
भारत के आहों को नित पीते थे गाँधी,
बस, ऐसे थे गाँधी।
खादी के वस्त्र से असहयोग, सत्याग्रह के शस्त्र से,
कोटिशः जन-जन को साथ ले लड़ते थे गाँधी,
बस, ऐसे थे गाँधी।
शान्ति का पैग़ाम ले, सौहार्द प्रेम का संदेश दे,
रामराज्य के ख़्वाबों को नित देखे थे गाँधी,
बस, ऐसे थे गाँधी।
थे स्वच्छता के अग्रदूत, न केवल परिवेश भर,
वातावरण सह नैतिक मूल्यों को,
स्वच्छता के प्रवर्तक बन जीते थे गाँधी,
बस, ऐसे थे गाँधी।
पर, आज देखने की बात है,
था विश्व का सबसे जो ताक़तवर,
सार्वकालिक व सार्वजनिक नायक था देश का,
बस, स्मृतिचिह्न बनकर राजघाट के पृष्ठों पर
प्रज्वलित दीप के आग़ोश में
दर्शन व पर्यटन का साधन बन
राजनीतिक चाहत के बिसात पर
सिमटा है आज सत्यव्रती, विश्वशान्ति का महादूत।
बस, आज केवल पुष्प, श्रद्धाञ्जलि में उलझा है गाँधी,
कोटि-कोटि जनभावों का कुचलित अवसादित मन,
पीढ़ी दर पीढ़ी अवहेलित अशिक्षित व शोषित जन,
उनके आहों को पीकर जिसका आकुल था अन्तर्मन,
दे हरिजन संज्ञात्मक उनके जीवन के दर्दों के
परिचायक है गाँधी, बस, ऐसे थे गाँधी?
पर, अफ़सोस, इस देश में भाग्यविधाता बने नेतागण
चुनाव या रैली हो या जयन्ती के मौकों पर
नाम गाते हैं गाँधी! क्या ऐसे थे गाँधी?
श्रद्धासुमन सादर नमन उस अद्वैत करमचन्द्र को,
जगमोहन था जन-जन, श्रीराम का जो दास था,
देख माँ भारत की दासता, जो प्रतिक्षण उदास था,
लाठी का आश्रय ले कोटि-कोटि जमात में
सबका बन अग्रदूत निर्भीक व नैष्ठिक बल
निष्काम अकिंचन बन शाश्वत अहिंसक पथ
नित चलते थे गाँधी, बस, ऐसे थे गाँधी।


लेखन तिथि : 2 अक्टूबर, 2022
            

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