जानता है सब जग में, शांति ही सुख का कारक है,
अहम भरी सोच ही, विध्वंसकारी युद्ध का विचारक है।
जियो और जीने दो का सच, हम सब ख़ूब जानते हैं,
पर स्वार्थ में, आसानी से इसको दरकिनार कर जाते हैं।
हर देश के लोगों के लिए, बसर के लिए ज़मीन काफ़ी है,
फिर भी दूसरे देशों का, ज़मीन हड़पने का प्रपंच रचाते हैं।
आदमी किसी भी देश का हो, आदमी तो सिर्फ़ आदमी होता है,
फिर भी गोरे-काले में भेद कर, ईश्वरीय कृति में दाग़ लगाते हैं।
अलौकिक ताक़त तो सबके लिए, दुनिया में बस एक ही है,
फिर भी इसे मज़हबों में बाँट कर, ईश्वर को बदनाम करते हैं।
स्वछंद से रहे अगर हर कोई, तो कहाँ गुटबंदी की ज़रुरत है,
भारत जैसा रहे अगर हर देश तो, 'नाटो' की कहाँ ज़रूरत है।
विज्ञान का इस्तेमाल, मानव कल्याण के लिए करे हर कोई,
भोजन-पानी, हवा, रितु, उर्जा का, आनन्द उठाए हर कोई।
तकनीक का इस्तेमाल कर, अगर विध्वंसकारी बम बनाए हम,
विज्ञान का विनाश में उपयोग कर, अपनी ही अर्थी सजाए हम।
माना दुनिया सदियों से, अमानवीय कारणों से मिटती आई है,
इक्कीसवीं सदी में, विज्ञान से मानवता जगाने की बारी आई है।
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