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आत्मविस्मृति (कविता)

हम उस राह के हैं पथिक!
जाते जिस पथ से,
वहाँ तेरे पाँवों की आहट सुनाई देती!
तेरी छनकती पायल;
खनकती चूड़ियाँ;
कानों की झूमती बाली,
औ कमर की करधनी;
जैसे भुलावे में डाल देती मुझे।
तब!
उस पथ से गुज़रना,
असम्भव सा हो जाता;
मेरे लिए
धीरे-धीरे
डूबने लगता,
तेरे प्यार की गहराई में।
होता;
एक अपूर्व एहसास
तेरा होने का; तुझे छूने का,
शिथिल हो जाते;
मेरे पाँव,
जैसे जड़ हो गए हों
तेरी प्रतीक्षा में
एक साथ चलने के लिए
जीवन में;
जीवन भर के लिए।


रचनाकार : प्रवीन 'पथिक'
लेखन तिथि : 29 जनवरी, 2019
            

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