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बदलीं जो उनकी आँखें (ग़ज़ल) Editior's Choice

बदलीं जो उनकी आँखें, इरादा बदल गया,
गुल जैसे चमचमाया कि बुलबुल मसल गया।

यह टहनी से हवा की छेड़छाड़ थी, मगर,
खिलकर सुगंध से किसी का दिल बहल गया।

ख़ामोश फ़तह पाने को रोका नहीं रुका,
मुश्किल मुक़ाम, ज़िंदगी का जब सहल गया।

मैंने कला की पाटी ली है शे'र के लिए,
दुनिया के गोलंदाज़ों को देखा, दहल गया।


            

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