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बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा (ग़ज़ल) Editior's Choice

बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा,
वो आदमी भी यहाँ हम ने बद-चलन देखा।

ख़रीदने को जिसे कम थी दौलत-ए-दुनिया,
किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा।

मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी,
कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा।

बड़ा न छोटा कोई फ़र्क़ बस नज़र का है,
सभी पे चलते समय एक सा कफ़न देखा।

ज़बाँ है और बयाँ और उस का मतलब और,
अजीब आज की दुनिया का व्याकरन देखा।

लुटेरे डाकू भी अपने पे नाज़ करने लगे,
उन्होंने आज जो संतों का आचरन देखा।

जो सादगी है कुहन में हमारे ऐ 'नीरज',
किसी पे और भी क्या ऐसा बाँकपन देखा।


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