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बे-नियाज़ अब नहीं मिलेंगे (गीतिका)

बे-नियाज़ अब नहीं मिलेंगे,
पतझर में गुल कहाँ खिलेंगे।

नैतिकता का क़त्ल हुआ है,
धरती, अंबर, शिखर हिलेंगे।

नर्म-नर्म दूबों पर चलना,
पगडण्डी पर पाँव छिलेंगे।

आसमान फट जाए गर तो,
खारों से हम उसे सिलेंगे।

ख़ुशहाली घर-घर में होगी,
तब ही तोता गाय जिलेंगे।


लेखन तिथि : 25 सितम्बर, 2019
आधार छंद : चौपाई
            

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