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बेहोशी से उबरना (कविता)

सच कभी नही मरता अब ये पुरानी बातें हो गई है
कबीर ने उस ज़माने मे कितनी ही बातों को उधेड़ कर रख दिया है
पर आज भी क्या आँखें खुली है
चापलूसों की चापलुसियत हावी है
जंग-ए-कुर्सी पर।

भला हो उस राजनीति का
जिसमें झूठ की पुलिंदा न हो
ग़रीबो के घर की जुठीया न हो
हर अँगूठे की शिनाख़्त न हो
फिर भी मारी जाती है
तमाम जनता
कुछ मुठ्ठी भर क़द्दावर
और चापलूसों को छोड़कर।


रचनाकार : विनय विश्वा
लेखन तिथि : 18 जनवरी, 2022
            

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