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भाई दूज (कविता)

भगवान सूर्यनारायण की पत्नी थी छाया, जन्मे यमराज और यमुना,
यमुना भाई से करती थी अपार स्नेह, भोजन कराने की करती थी कामना।
यमराज कभी न आ पाते, आया कार्तिक शुक्ला का दिन,
यमुना ने भाई को दिया निमंत्रण, किया भाई को वचन के आधीन।

यमराज ने सोचा बहन ने बुलाया, रखना पड़ेगा बहन का मान,
जाने से पहले यमराज ने दिया, नरक के जीवों को मुक्ति दान।
भाई को घर आया देख, यमुना की ख़ुशी चढ़ गई परवान,
किया उसने पहले स्नान, फिर कराया भाई को भरपेट भोजन पान।

हुए यमराज बहुत प्रसन्न, देना चाहा बहन को मुँह माँगा वरदान,
भाई इस दिन रोज़ पधारे, पूरा करें बहन का एक अरमान।
जो बहन करें इस दिन, भाई को तिलक, न रहे उसे यम का भय,
यमराज ने बहन को कहा तथास्तु, और दिया इस बात का अभय।

शुरू हुई ऐसे भाई दूज की प्रथा, बहनें लगाती भाई को तिलक,
जब तक न आता भाई, तब तक दरवाज़ा देखती रहती अपलक।
भाई स्वीकार करता बहन का आतिथ्य, रखता बहन का मान,
बहन करती भाई की सुरक्षा की कामना, गाती प्रीत के गान।

भाई बहन का यह रिश्ता प्यारा, होता बड़ा ही पावन,
जाति धर्म से परे यह रिश्ता, झलकता दोनों का अपनापन।
ऐसा ही है भाई दूज का त्यौहार, जज़्बातों से भरा यह त्यौहार,
बहन लगाती भाई को रोली, भाई देता बहन की रक्षा का इक़रार।

भाई कहता बहन से अपनी "रखना बहन सदा रोली का मान,
गर्व से मस्तक ऊँचा रखना, न सहना कभी जीवन में अपमान"।
बहन भाई के स्नेह प्यार में, यह रोली तो है एक पावन निमित्त,
माथे पर सजी बहन की रोली, कराती भाई बहन का स्नेह प्रतीत।

भाई बहन के बीच प्यार का यह, बड़ा पवित्र अनोखा सा पर्व,
भाई बहन के बीच अपार स्नेह का, प्यारा सा बंधन यह पर्व।
आया भाई दूज का त्योहार, दर्शाने भाई बहन का प्यार,
ख़ुशियों की बहेगी धार, बहेगी स्नेह की सुहानी बयार।


लेखन तिथि : 5 नवम्बर, 2021
            

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