सतरंगी इन्द्रधनुष
बुन रहा आकाश।
है मन ऐसे खिला-खिला
जैसे पलाश।।
बल्लियों सा उछलता
है ये दिल।
तय करना दूरी
होता मुश्किल।।
मीलों भटक रहे पाँव
लग रहे हताश।
टेसू का एक
जंगल दिख रहा।
अंगारों की कहानी
लिख रहा।।
हवाओं ने छिड़क दिया
है गुलाब पाश।
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