अपनी तरह की बोली बोलने का, है सबको आज़ादी।
पर जो बोलता प्रभावी, वो दुनिया पर पड़ता भारी।।
प्यार की बोली बोल कर, किजिए सबके दिलों पर राज।
काम कैसा भी हो जग का, हो जाता सब बहुत आसान।
मित्रों की तो मत पूछिए, लग जाती उनकी लम्बी कतार।
दुश्मन चाहे कोई हो, प्यार की बोल सुनने को रहते तैयार।।
ग़ुस्से की बोली तो, हर जगह पड़ता हमेशा अपने पर भारी।
घर हो या हो समाज, लोग बनाए रखना चाहते उससे दूरी।
समाज से कुछ भी पाना, पर जाता उनके जीवन में भारी।
हर जगह तिरस्कृत होने से, सूझने लगता अपनी बर्बादी।।
अहंम की बोली बोलते, अपने हल्का होने का बोध करवाते।
कुछ भी बोलें, लोग उनकी बातों को गम्भीरता से नहीं लेते।
ऐसे लोग बिना मतलब के, हर बात पर विवाद करते रहते।
अंहमी जल्दी सुनते नहीं, इसलिए जल्दी आगे बढ़ते नहीं।।
आदमी कैसा भी हो, उसकी बोली करवा देता उसकी पहचान।
किसी के संस्कारों का भी, उसकी बोली से हो जाता है ज्ञान।
वेषभूषा कैसा भी हो, बोली कराता उसके व्यक्तित्व की पहचान।
कबीर दास भी कह गए, आनंदित करे वैसी होनी चाहिए ज़बान।।
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