देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

बुद्ध बनने की इच्छा (कविता) Editior's Choice

सिद्धार्थ के पिता की तरह;
मेरे पिता के पास कोई राजपाट नहीं था,
न मुझमें बुद्ध बनने की कोई इच्छा।
मैंने सिर्फ़ एक घर छोड़ा था
घर में माता-पिता और उनकी आँखों में सपने।
सपनों की ख़ातिर शहर में भटके इधर से उधर,
इस कोचिंग से उस कोचिंग,
गुरू बदले, पढ़ने के तरीक़े बदले।
ख़ुद को काया क्लेश भी दिया।
सुजाता की खीर भी खाई,
वट वृक्ष के नीचे बैठकर बिस्किट भी खाए।

तब जाकर समझ आया कि–
मध्यम मार्ग पर चलकर ही लक्ष्य हासिल होगा।
अब अरहत बनने के बाद घर जाऊँगा
किसी राहुल को लेने नहीं,
बल्कि किसी यशोधरा को लेकर।


लेखन तिथि : 3 नवम्बर, 2022
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें