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चराग़ों की तो आपस में नहीं कोई अदावत है (ग़ज़ल)

चराग़ों की तो आपस में नहीं कोई अदावत है,
अँधेरा मिट नहीं पाया उजालों की सियासत है।

जहाँ तू सर पटकता है वहाँ बस एक पत्थर है,
इबादत से बड़ी ग़ाफ़िल यहाँ पर शै नदामत है।

बहाना मत ज़रा आँसू समझ लेना मेरे बाबा,
क़त्ल मेरा करेंगे वो, बताएँगे शहादत है।

नशा उतरे हकूमत का तभी हाकिम कोई समझे,
जहाँ तामीर कुरसी है, पराई वो इमारात है।

रंगे हैं हाथ जिसके ख़ून से ख़ैरात वो बाँटे,
क़यामत है क़यामत है क़यामत है क़यामत है।


रचनाकार : मनजीत भोला
लेखन तिथि : सितम्बर, 2019
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती: 1222 1222 1222 1222
            

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