देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

छठ पर्व (लेख) Editior's Choice

जल-लहरियों में आस्था और विश्वास के रंगों में सजी, शृंगार-विन्यास में व्रतधारी स्त्रियाँ दूर पहाड़ों पर नीम-कुहासे को पछाड़ कर आसमान की पहली सीढ़ी चढ़ आए सूरज की ओर मुँह किए, छठ के पारंपरिक गीत गाती हुई, स्त्रियों को पिछले साल मैंने भी देखा। यही अनुभूति हुई मुझे कि जो भी आस्था के गीत व भजन ये स्त्रियाँ गा रही हैं, संभवतः सूर्य भगवान के आचार-व्यवहार से इन्होंने यही सीखा होगा कि अंधकार अस्थाई है। निश्चित ही अंधकार के बाद प्रकाश का अवतरण होगा।

सूर्य डूबेगा ज़रूर लेकिन पुनः दैदीप्यमान होगा नई उम्मीद और आशा की नई किरण लेकर।

एक विहंगम दृश्य, भोर की पौ फटती है और पीत स्वर्ण हो जाती है संपूर्ण प्रकृति अर्थात नदी, पोखर, सरोवर, तालाब के तटों पर बदलते मौसम की शीत बयार से विरत असंख्य श्रद्धालु सूर्य भगवान के दर्शन हेतु आतुर हैं। जहाँ महिलाएँ सर्द-सुबह की परवाह किसे बिना माँग में लंबा सिंदुर काढ़े संपूर्ण शृंगार में पानी में अर्ध-रूप से भीगते हुए, खड़े होकर, प्रकृति जनित फल व सब्जियाँ तथा पारंपरिक मिठाईयाँ ठेकुआ व खाजा को बाँस के सुप्पे व टोकरी में भरकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं।

जहाँ श्रद्धा व कृतसंकल्पता होती है, मनोकामनाएँ अवश्य पूर्ण होती हैं। मनोकामनाओं के फलीभूत होने हेतु स्त्रियाँ छठ व्रत करती हैं।

दिवाकर की रश्मियाँ पहली दफ़ा जब जल धाराओं से टकराती हैं उनका आचमन कर भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर समस्त मानव कल्याण व उसकी समृद्धि हेतु प्रार्थना व अर्चना करते हैं।

छठ पर्व दीपावली के बाद मनाया जाने वाला प्रकृति पूजा, आस्था और पर्यावरण का पर्व है। यह पर्व नदियों व जलाश्य के तटों व किनारे बड़े हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा में किसी देवी-देवता की मूर्तियों या मंदिर की पूजा नहीं की जाती बल्कि धरती और जल की पूजा के साथ भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर उनके समक्ष समस्त मानव की स्वास्थ्य की कामना उन्हें समृद्धि व अन्न, जल, ऊष्मा देने के लिए कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

छठ पर्व के दौरान प्रयुक्त होने वाली केवल प्रकृति जनित खाद्य वस्तुओं को ही शामिल किया जाता है अथार्त छठ पर्व की आस्था के केंद्र में प्रकृति और सूर्य भगवान हैं जिनके प्रति छठ पर्व को मनाने वाले श्रद्धालुओं द्वारा आभार संप्रेषित किया जाता है।

वास्तव में छठ पर्व स्वच्छता व सफ़ाई का त्यौहार भी है।इस त्योहार के पीछे कहीं न कहीं हमारे पुरखों की जल निधियों को श्रद्धा व आस्था द्वारा सहेजने की मंशा भी उजागर होती है। पर्व से पहले नदियों, तटों, जलाशयों की साफ़-सफ़ाई की जाती है ताकि व्रत-धारी पानी में घंटों खड़े रहकर सूर्य की उपासना कर सकें।

छठ पर्व का एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह भी है कि विटामिन डी के श्रोत भगवान सूर्य को अर्घ्य देने हेतु घंटों जलाशयों में खड़े रहकर शरीर में साल भर तक के लिए विटामिन की भी पूर्ति हो जाती है।

छठ पर्व के बहाने बरसात के बाद जल निधियों में बहकर आए कूड़े की भी सफ़ाई तो हो जाती है किंतु पर्व समापन के बाद स्थिति जस की तस, छठ पूजा के लिए सजाए गए घाट में हर तरफ़ गंदगी, प्लास्टिक, पोलिथीन व अन्य प्रकृति हंता वस्तुओं से अटी हुई दृष्टिगत होती है।

छठ पर्व का उद्देश्य श्रद्धालुओं द्वारा प्रकृति व पर्यावरण को बचाने के लिए आस्था के साथ सूर्य भगवान की अर्चना व अभ्यर्थना भी है जिसके उपभोग के लिए कृतज्ञता ज्ञापित करना छठ पर्व को मनाने का सर्वोच्च व उज्जवल पक्ष है।

दीपावली के बाद छठ पर्व में छत्तीस घंटे स्वच्छता व पवित्रता और उसके बाद तीन सौ इकसठ दिन वही घाटों पर जस का तस गंदगी भरा माहौल। हर साल छठ पर्व पर देश की नदी, जलाशयों को स्वच्छ बनाने, पुराने जीर्ण-शीर्ण तालाबों को पुनर्जीवित, नई जल नीधियों का निर्माण उनका संरक्षण व उनमें गंदगी साबुन, प्लास्टिक जाने से रोकने की कृत संकल्पता हो तो छठ पर्व की कीर्ति और यश किसी और ऊँची बुलंदियों को ही छू जाएगी।

छठ पर्व हमारी आस्था, प्रकृति और सूर्य पूजा का पर्व है आइए हम सभी इसे पर्यावरण संरक्षण और जल श्रोतों की स्वच्छता और संरक्षण के पर्व के रुप में भी मनाएँ तभी छठ पर्व की सार्थकता और उद्देश्य सिद्ध होगा।


लेखन तिथि : अक्टूबर, 2022
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें