देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

छठ पूजा की महिमा (कविता)

यह त्योहार है बिहार का गर्व,
लो आ गया छठ का महापर्व।
स्वच्छता और संस्कृति का सरगम,
आस्था और विश्वास का संगम।
एक बार जो व्रत किया,
छूट नहीं सकता जब तक है दम।

छठ मैया बहना है सूर्य की,
जिन्हें बच्चों से प्यार है।
यह पूजा है उस सूर्य की,
जो जीवन का आधार है।

नहाय-खाय से होती है शुरुआत,
व्रती खाती है कद्दू-भात।
उसके बाद आती है खरने की रात,
पूरे दिन व्रती सहती है आज,
रात को खाती है रोटी खीर के साथ,
प्रसाद के रूप में जो बँटता है पूरी रात।

संध्या अर्घ्य की कठिन है शर्त,
अन्न जल के बिना होता है व्रत।
पूरे दिन बनता है प्रसाद,
ठेकुआ जिसमें होता है ख़ास।

बाँस की बहंगी और सूप में लेकर प्रसाद,
संध्या को जाते हैं, नदी के घाट।
डूबते सूर्य को देते हैं अर्घ्य,
जाति धर्म का नहीं करते फ़र्क़।

सुबह के अर्घ्य की करते हैं बात,
ठंडे पानी में त्यागकर साज,
सूर्य उदय की प्रतिक्षा है आज।
अर्पण कर सूर्य को प्रसाद,
व्रती तोड़कर अपना उपवास,
पूर्ण करती है छठ का त्योहार।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 29 अक्टूबर, 2022
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें