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चिराग़ और शमा (कविता)

चिराग़ की लौ बुझने लगी,
अँधेरा अपना ख़ौफ़ फैलाने लगी।
तभी दूर एक शमा जली,
कौन था, क्या पता चला।

यह जीवन है, उसकी ही कहानी है,
जिसमे बड़ी छोटी है जवानी।
जब आता है बुढापा,
खो जाता है आपा।
इसे समझो, इसे जानो,
हर पल की क़ीमत पहचानो।

एक जीवन जाएगा,
कोई नया धरा पर आएगा।
कुछ ऐसा कर जाओ,
याद उन्हें भी आओ,
आने वाला शमा भी,
चिराग़ की दास्ताँ कहे।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 12 मई, 2021
            

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