कुशीनगर, उत्तर प्रदेश | 1911 - 1987
‘चुक गया दिन’—एक लंबी साँस उठी, बनने मूक आशीर्वाद— सामने था आर्द्र तारा नील, उमड़ आई असह तेरी याद! हाय, यह प्रतिदिन पराजय दिन छिपे के बाद!
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