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दर्पण (कविता)

देख ले जहान आज,
कल कैसा होएगा।
संचारित दुनिया में,
अकेलापन रोएगा।।

बच्चा कहीं और पले,
माता कहीं और हो।
कौन देगा ज्ञान ध्यान,
पैसों की हिलोर हो।

अपनों की डोर जाएँ,
अपने ही तोड़ जो।
सपनों के पिछे भागें,
बोने हर मोड़ हो।

सिसकी दुलार वाली,
फ़ोन पर टोहेगा।
देख ले जहान आज,
कल कैसा होएगा।

जिस पे हो आस वही,
पास नहीं आएगा।
राज-पाट पाके पास,
ख़ास बन जाएगा।

संबंधों के बंधनो में,
हल्की-सी भेंट होगी।
महँगी-सी दुनिया में,
सस्ती-सी रेट होगी।

दिल एक पाने को ही,
पाए दिल खोएगा।
देख ले जहान आज,
कल कैसा होएगा।

दिल जो भी नेक होगा,
लाखों में एक होगा।
मतलबी दुनिया में,
झूठा फ़रेब होगा।

पग पथ पर चले,
बिन थक जाएगा।
उँगली पे दुनिया का,
भार बढ़ जाएगा।

गुम होगा चैन कहीं
पलभर सोएगा।
देख ले जहान आज,
कल कैसा होएगा।

तरंग के रंग, रंग
जीवन पे गाज हो।
बोलियाँ तो होंगी पर,
नशीली रिवाज हो।

शोर चारों छोर होगा,
भोर भी बेजोर हो।
सुरीली आवाज़ वाला,
कड़वा कठोर हो।

पक्षी घट जाएँगे तो,
वन राज खोएगा।
देख ले जहान आज,
कल कैसा होएगा।


लेखन तिथि : मार्च, 2023
            

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