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दीप पर्व का सम्मान (कविता)

दीपों की लड़ियाँ सजाएँ
आइए दीवाली मनाएँ,
उल्लास भरा त्यौहार मनाएँ।
एक दीप राष्ट्र के नाम भी जलाएँ
भारतीयता के नाम भी एक दीप जलाएँ
पर उन सैनिकों को न भूल जाएँ
जिन्होंने सरहद पर प्राण गँवाए,
उनके नाम का भी एक दीप जलाएँ
साथ में एक दीप उन सैनिकों के लिए भी
जो सरहद की निगहबानी के कारण
दीवाली में घर न आ पाए,
जाने अनजाने हुतात्माओं के नाम भी
एक दीप श्रद्धा से जलाएँ।
देश की ख़ुशहाली, विकास
संपन्नता, संप्रभुता की ख़ातिर
अपना दायित्व निभाएँ,
कम से कम एक दीप तो जलाएँ।
इतना भर करके न ख़ुश हो जाएँ
अपने पड़ोस में किसी ग़रीब के
घर का अँधेरा मिटाएँ,
दीवाली की ख़ुशियों में
उसके घर भी जाकर
एक दीप ज़रूर जलाएँ,
मिलकर दीवाली मनाएँ।
अपने घर का अँधेरा तो
सभी दूर कर लेते हैं मगर,
हर किसी का घर हो सके रोशन
हर कोई ये हौसला दिखाए।
दीप पर्व सिर्फ़ दीप जलाने के लिए
भला कहाँ आता है?
सच तो ये है कि दीप पर्व
हर साल इसलिए आता है
कि हर घर हर कोना रोशन होगा
दीप पर्व तभी सार्थक होगा।
हर साल दीप पर्व मायूस होकर जाता है
अगले साल फिर कोने-कोने में
बिखरे उजाले को देखने आता है,
दीप पर्व का सम्मान करें
एक एक दीप के साथ सब मिलकर
दीप पर्व का सम्मान करें।


लेखन तिथि : 4 नवम्बर, 2021
            

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