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देशगीत (गीत)

देश के पुजारियों, मिल के करो आरती
दे कर संदेश यह, वसुंधरा पुकारती।
भिन्न भिन्न धर्म है
प्रदेश भी अनेक हैं,
भिन्न रंग भिन्न वर्ण
किन्तु कर्म एक है।
करो र्निमल श्वेत धवल रुप नवभारती
दे कर संदेश यह, वसुंधरा पुकारती।
दीप चाहे कितने हो
सभी में तत्त्व एक है,
शरीर चाहे कितने हो
सभी में रक्त एक है।
मर मिटो सीमान्त पर हारो नही कभी सारथी,
दे कर संदेश यह, वसुंधरा पुकारती।
विनय विचार में
हिमालय से महान हो,
मन की पवित्रता
देवालय के समान हो।
देश प्रेम स्वाति नीर चातक पुकार सी,
दे कर संदेश यह, वसुंधरा पुकारती।
धारणा में सागर सी
मिलती गहराईयाँ,
कदम कदम बढे तो
आसमाँ सी ऊचाईयाँ।
तुलसी के मानस सी सूर की सुभारती,
दे कर संदेश यह, वसुंधरा पुकारती।
रामकृष्ण राजा शिवा
की वीर भूमि है,
सत्यमेव जयते की
रही सदा धूम है।
भारत माँ जन जन से पुत्र को सँवारती
दे कर संदेश यह, वसुंधरा पुकारती।।


रचनाकार : सीमा 'वर्णिका'
लेखन तिथि : 1985
स्रोत :

पुस्तक : पारिजात (काव्य संग्रह)
पृष्ठ संख्या : 60
प्रकाशन : सन्मति पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स
संस्करण : अक्तूबर, 2020
            

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