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धुँधलके में (नवगीत)

धूप की चादर
बिछी हुई है
दिन के पलके में।

झूम-झूम के पावस
बिल्कुल न बरसा।
ताल-झरना-खेत लगा
जल को तरसा।।

कोई रात के
बीज बो गया
है धुँधलके में।

हुआ धाँय-धाँय सुन
सन्नाटा घायल।
औ आह की
छनक उठी छम-छम पायल।

बंदूकों के
साए हुए
आतंकी हलके में

अपराध की दुनिया से
सुख आहत है।
गुमशुदा सी हो जाए
ज्यों राहत है।।

है न्यायालय की
लिखी हुईं शर्तें
मुचलके में।


लेखन तिथि : 2020
            

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