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दिल की पतंग (कविता)

ना जाने किससे डोर मेरी जुड़ी जा रही है,
मेरे दिल की पतंग देखो उड़ी जा रही है।
लहजा तो ऐसा है कि
सड़क पर मचलती कोई कुड़ी जा रही है,
मेरे दिल की पतंग देखो उड़ी जा रही है।

यह कैसी चंचलता है कैसा उल्लास है,
किस दिशा में यह बढ़ी जा रही है।
रोके से ना रूकती सरपट बढ़ी जा रही है,
मेरे दिल की पतंग उड़ी जा रही है।

जाने कितनी बेकरार है,
मंज़िल पाने को अड़ी जा रही है।
पंख फैलाए आसमाँ में
उमंग की तरंग बनी देखो आज पतंग,
मुझसे ही मुँह फेर कर
जाने किस दिशा में मुड़ी जा रही है।
संभलती नहीं मुझसे अब
आकर थाम ले कोई डोर मेरी,
दिल की पतंग उड़ी जा रही है।

पाना है बहुत कुछ इसे
सितारों तक भी जाना है,
इस बात के लिए मुझसे ही लड़ी जा रही है।
मगर मुझे पता है कटी पतंग का हश्र
इसलिए कहता हूँ इससे
ऊँचाई कितनी भी रख
पर डोर ज़मीन पर हो,
क्यों अपनी धुन में बढ़ी जा रही है।

पर यह तो मस्त मलंग ठहरी
कहती है डोर थामने वाले की तलाश है,
वह मेरी मंज़िल मेरी आस है,
उसी के लिए तेरी पतंग बढ़ी जा रही है,
तेरे दिल की पतंग उड़ी जा रही है।


रचनाकार : आशीष कुमार
लेखन तिथि : 14 जनवरी, 2022
            

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