दो जहाँ की हसीं जज़ालत है,
ख़ुल्द से बड़के ख़ूबसूरत है।
मुल्क रब की निगाहों सा दिल-जू,
पाक एकता की पाक मूरत है।
दिल और जान फ़िदा हैं इस पर,
क़ल्बोजाँ की वतन ही राहत है।
इश्क़ मैं ही नहीं करूँ इसको,
हिंद से हर बशर को चाहत है।
हिंद के दम से ही जहाँ क़ायम,
ख़िल्क़ते रब की हिंद ज़ीनत है।
अपने पास वो गुहर नवीननाथ,
जो ज़माने में बेशक़ीमत है।
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