धन्य-धन्य वह तिरुत्तनी और,
धन्य हुआ वह तिरुपति।
जन्मीं जहाँ विलक्षण प्रतिभा,
जिसे पवन सी मिली गति।
वेदों और उपनिषदों से ही,
जुड़ी रही जिनकी आशा।
शास्त्र ज्ञान को पा लेने की,
जिनकी बढ़ती रही पिपासा।
ज्ञान चक्षु से युक्त सदा ही,
दर्शनशास्त्र के थे ज्ञाता।
संस्कृति के थे कुशल विचारक,
शिक्षण कार्य उन्हें भाता।
शिक्षा के प्रति सदा समर्पण,
दीपक सा वे जग में शोभित।
शिक्षा की सेवा की खातिर,
भारत रत्न से हुए सुशोभित।
श्वेत वस्त्र सर पर धारण कर,
शिक्षा को जिसने पूजा।
सरस्वती के वरद पुत्र का,
कर्म रहा न वह दूजा।
जन्मदिवस को किया समर्पित,
शिक्षक के सम्मान दिवस में।
उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बन,
भारत पूजा मान कलश में।
जिसने जीवन किया समर्पित,
वार दिया अपना तनमन।
ऐसे शिक्षक थे भारत के,
सर्वपल्ली राधाकृष्णन।
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