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दशहरा (कविता)

सच्चाई की होती जीत सदा, झूठ की होती हार,
राम-रावण युद्ध का, अंत है दशहरे का त्यौहार।
सत्य की हुई जीत, झूठ का हुआ मुँह काला,
चारों तरफ़ हो रहा, श्री राम का बोलबाला।

सच की हुई संरचना, धर्म की हुई प्रतिष्ठा,
सच्चाई में हुई स्थापित, लोगो की पूर्ण निष्ठा।
चेतना का हुआ संचार, सत्य ने लिया विस्तार,
अंत हुआ दशानन का, मिट गया अनाचार।

मिटा क्रोध, मिटा द्वेष, मिटा मन का क्लेश,
राम राज्य में न रहा, कहीं कोई भी दरवेश।
छाई हर ओर सुख शांति, बही धर्म की सरिता,
सनातनी परचम फहराया, दिलों में बसी पवित्रता।

हुआ था इस दिन एक, नए युग का प्रारम्भ,
भगवान राम ने तोड़ दिया, दशानन का दम्भ।
करें आज हम अपने अंदर की बुराइयों का अंत,
संस्कारों का आग़ाज़ हो, बसें मन में सनातन अनंत।

जय श्रीराम आज भी कहते हम, पर संस्कारों का हो रहा हनन,
धर्म के नाम पर हो रहा अधर्म, विचारों का हो रहा पतन।
हैवानियत के गलियारे में, मानवता का हो रहा दमन,
फ़ैल रहा अशांत माहौल, मिट रहा दिल का अमन।

आओ फिर स्थापित करें, सनातन धर्म की यज्ञशाला,
एक नया समाज गढ़ें, संस्कारों की हो पाठशाला।
सत्य को सम्मान मिले, पापों का हो वहिष्कार,
आओ हम सब पढ़ लें फिर, भगवत गीता का सार।

दशानन का करें संहार, मिटादें सारे भ्रष्टाचार,
फहराएँ सौहार्द का परचम, मिटा दें सारे कदाचार।
नए भारत का जन्म हो, राष्ट्र बने विश्वगुरु,
सत्कर्मो की प्रतिष्ठा हो, हर दिल में हो एक सद्‌गुरु।


लेखन तिथि : 15 अक्टूबर, 2021
            

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