एक सपना उगा जो नयन में कभी
आँसुओं से धुला और बादल हुआ!
धूप में छाँव बनकर अचानक मिला,
था अकेला मगर बन गया क़ाफ़िला।
चाहते हैं कि हम भूल जाएँ मगर,
स्वप्न से है जुड़ा स्वप्न का सिलसिला।
एक पल दीप की भूमिका में जिया,
आँज लो आँख में नेह काजल हुआ।
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