अकाल के
पंजे में
फँस गया ज़िला।
छाती पीट
रोए खेत।
बहती नदी
होती रेत।
बदले में
फ़ज़ल के
धोखे का सिला।
चीखें, रुदन,
करुण पुकार।
हैं ज़लज़ले
के आसार।
पत्थरों का
पेड़ है
काँप कर हिला।
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