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फ़ौजी की आत्मकथा (कविता)

मैं हूँ फ़ौजी भारत का, देश पर मर मिटने का है अरमान,
राष्ट्र सुरक्षा ही मेरा प्रण है, यही है मेरी पहली पहचान।
चाहे राजस्थान की गर्मी हो या फिर लेह लद्दाख की ठण्ड,
देश ही मेरा अभिमान है, रहूँ चाहे राष्ट्र के किसी भी खंड।

आँच न आने दूँगा मेरी जन्मभूमि पर, जब तक रहेगी जान,
न झुकने दूँगा कभी तिरंगे को, अक्षुन्न रखूँगा तिरंगे का मान।
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, मेरी ही तो है ज़िम्मेदारी,
असम से लेकर अरुणाचल को बचाने में, मेरी ही साझेदारी।

लिया जो जन्म इस पावन धरती पर, इसके लिए ही मर मिटूँगा,
इसके क़तरे-क़तरे को मैं, अपना ख़ून देकर भी सीचूँगा।
न पड़ने दूँगा पाँव दुश्मनों के, भारत की पावन भूमि पर,
बचाऊँगा हर हाल में राष्ट्र को, अपने प्राणों की आहुति देकर।

तपती धुप हो या बर्फ़ या बारिश, हरदम युद्ध को रहता तैयार,
देश पर करने को प्राण न्योछावर, रहता सरहद पर तटस्थ होशियार।
जब तक रहेंगे प्राण मुझ में, न मानूँगा मैं शत्रुओं से हार,
रहूँगा तत्पर हर पल सीमा पर, करने को यह प्राण निसार।

घर-परिवार सब छोड़ कर आया, छोड़ आया माता-पिता का प्यार,
एक ही जज़्बा धधकता दिल में, करूँ देश पर ख़ुद को निसार।
नई नवेली दुल्हन को छोड़ कर, आ गया सीमा पर सुन फ़र्ज़ की पुकार,
रखूँगा प्रेयशी का मस्तक ऊँचा, करके ख़ुद को देश पर निसार।

हँसते-हँसते उसने विदा किया मुझे, उसके जज़्बे को करूँ सलाम,
युद्ध भूमि में भेज बेझिझक, दी है उसने मुझे मेरी पहचान।
इस पहचान को रखूँगा सँभाल, लड़ूँगा दुश्मनों से बनकर पहाड़,
दुश्मन की छाती से निकलेगा ख़ून, जब सुनेंगे इस फ़ौजी की दहाड़।

रहता हूँ सरहदों पर अडिग खड़ा, तभी लोग घरों में मनाते ख़ुशियाँ,
राष्ट्र को देखता हूँ चैन से सोते जब, मिलती मुझे भी अपार ख़ुशियाँ।
जिस धरती पर मैंने लिए जनम, यह जीवन तो ऋणी उसी धरा का,
निसार करूँगा अपना जीवन देश पर, और अदा करूँगा क़र्ज़ धरा का।

तिरंगे में लिपट कर जब आऊँगा मैं, ख़ुशी के दो आँसू बहा लेना,
फ़ौजी ने युद्ध में पीठ न दिखाई, इस बात की ख़ुशियाँ मना लेना।
ओढ़ कर आऊँगा जो तिरंगे का कफ़न, तभी तो आबाद रहेगा चमन,
आज देश के सभी वीरों को, अंतिम पल में करता हूँ नमन।


लेखन तिथि : 14 फ़रवरी, 2022
            

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