देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

गांधी जी और स्वतंत्र भारत की स्त्री (लेख) Editior's Choice

गांधी जी का जीवन-दर्शन आश्रय स्थल है उन जीवन मूल्यों और विचारों का जहाँ श्रम है, सादगी है सदाचार है, आत्मसम्मान है, सत्य है, अहिंसा है, दया है, उन्नयन है, प्राचीनता में नवीनता है, स्वप्न हैं, स्वाधीनता है, स्वराज है, रोज़गार है।
गांधी जी के विचार व दृष्टिकोण आधुनिक व उन्नतशील भारत की क्रांति की वह मुहिम है जिसका बेहद अहम हिस्सा स्त्री है जो महात्मा गांधी के विचारों के सरोकार का महत्त्वपूर्ण केंद्र रही है।

सामान्यतः महात्मा गांधी धार्मिक, सांस्कृतिक समाज और स्वदेशी परंपरा के उदार समर्थक हैं किंतु जहाँ समाज में स्त्रियों की स्थिती और उसकी उन्नति का प्रश्न है वहाँ गांधी जी ने बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में स्त्रियों के संदर्भ में जो दृष्टव्य और आधुनिक विचार अपने भीतर विकसित किए वह आज की इस अत्याधुनिक इक्कीसवीं शताब्दी में उनकी क्रांतिकारी सोच को उजागर करती है।
सामाजिक व स्वदेशी परंपराओं और रीतियों का निर्वहन करने के साथ ही साथ गांधी जी पुरुष और स्त्री की समता के भी प्रबल पक्षधर रहे हैं यह उनके लेख, पत्र,विचारों और और आचार में दिखाई देता है।

गांधी जी स्त्री को अबला कहने के सख़्त विरोधी हैं उनके अनुसार स्त्री को अबला कहना उसकी आंतरिक शक्तियों और उसके अस्तित्व को कमतर व कमज़ोर आँकना है।
वास्तव में गांधी जी ने स्त्रियों को पुरुष की अपेक्षा अधिक सक्षम और शक्तिशाली माना है यही कारण है कि महात्मा गांधी ने स्त्रियों को स्वाधीनता की लड़ाई के लिए आंदोलन में सहभागिता का पूंर्ण अवसर दिया और उन्होंने स्त्रियों को सशक्त करने के लिए शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक उत्थान के लिए कई प्रोग्राम चलाए।

गांधी जी के जीवन में प्रेरणा का श्रोत बहुत सी स्त्रियाँ रही हैं पहली स्त्री उनके जीवन में उनकी माँ पुतली बाई हैं जिन्होंने अशिक्षित होते हुए भी गांधी जी के भीतर अनुशासन, ज्ञान और उपवास लेने की आदतों को विकसित किया यही कारण है कि स्वराज आन्दोलन में गांधी जी के कठोर से कठोर उपवास लेने की प्रवृत्ति उजागर होती है।
दूसरी स्त्री गांधी जी के जीवन में उनकी धर्म-पत्नी कस्तूरबा हैं जो पत्नी के साथ-साथ उनकी मित्र भी हैं क्योंकि कस्तूरबा से उनकी शादी बचपन में ही हो गई थी।
कस्तूरबा के अपने स्वतंत्र विचार हैं कभी उन्होंने अपने विचारों की पराधीनता को स्वीकार नहीं किया साथ ही वह सहनशील, अपने विचारों पर अडिग रहने वाली स्वतंत्र व्यक्तित्व की महिला हैं जिनके जीवन-मूल्यों का प्रभाव गांधी जी के विचारों को भी प्रेरित करता है।

गांधी जी वह विचार और प्रभावपूर्ण व्यक्तित्व हैं जिन्हें जिज्ञासा है सदविचारों को सीखने की और अपनाने की, यही कारण है कि अपने जीवन में कई महिलाओं से उन्होंने प्रेरणा ली है और महिलाओं को भी उन्होंने प्रेरित किया है ।
माँ और पत्नी के अतिरिक्त गांधी जी के जीवन में अन्य महिलाए भी रही हैं जिनकी कार्य प्रणाली और विचारों ने गांधी जी को अत्यंत प्रेरित किया।
इनमें तीसरी सरोजनी नायडू हैं जिनकी आत्मनिर्भरता और निर्भीकता गांधी जी भारत के लिए अनुकरणीय मानते हैं। चौथी महिला श्रीमति एनी बेसेंट हैं जो भारतीय तो नहीं हैं किंतु भारतीय परंपराओं और संस्कृति से प्रभावित होकर यहीं रुक गईं जिन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए होमरूल आंदोलन किया।
इन्हीं महिलाओं में मेडलीन उर्फ़ मीरा बहन का ज़िक्र किए बिना नहीं रहा जा सकता है मीरा बहन जिनका ब्रिटिश होने के बावजूद आश्रम में निष्ठा और अपनेपन के साथ रहना प्रेरणा की मिसाल है।
कस्तूरबा गांधी, सरोजनी नायडू, सुचेता कृपलानी, विजया लक्ष्मी पंडित, अरूणा आसफ अली, सुशीला नायर, ऊषा मेहता, राजकुमारी अमृत कौर, सरला देवी चौधरानी ये वे स्त्रियाँ हैं जिन्होंने गांधी जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

गांधी जी के पत्र, लेख, आख्यान को पढ़कर यह महसूस होता है कि महिलाओं की शिक्षा, उनका आर्थिक व मानसिक विकास, उनके विचारों और संवेदनाओं के प्रति गांधी जी की अटूट आस्था रही है और उनका संपूर्ण जीवन स्वाधीनता आंदोलन और स्त्री-चिंतन और उसके सुधार में ही व्यतीत हुआ है।

गांधी जी जिन्होंने स्वाधीनता के साथ-साथ स्त्रीयों की आत्मनिर्भरता, स्वतंत्र सोच, शिक्षित और पुरुषों की समकक्षता का स्वप्नन देखा था वह स्वप्न आज धराआयी होता नज़र आ रहा है। कहाँ हैं गांधी जी के स्वतंत्र भारत की बेड़ी मुक्त, उन्मुक्त सोच व अस्तित्व वाली स्त्रियाँ? क्यों आज भी स्त्रियाँ सुरक्षित नहीं हैं अपने घरों, सड़कों व चौराहों पर, खेत खलिहानों या अपने कार्यक्षेत्रों में?

बापू के सपनों के भारत में स्त्रियाँ स्वावलंबी और अपने अधिकारों के लिए सजग हैं, निर्भीक हैं पराधीनता उन्हें स्वीकार्य नहीं है यह सब हुआ भी है बड़े पैमाने पर किंतु फिर भी आज की स्त्री बलात्कार, हिंसा, सामाजिक भेदभाव, वर्गभेद, परिवार और समाज के दमन चक्र से जूझ रही हैं।

क्या स्त्रियों का शिक्षित और सशक्त होना भर ही पर्याप्त है स्वयं की स्थिति मज़बूत दर्शाने हेतु सामाजिक पायदान पर? यहाँ पुरुष पक्ष का शिक्षित और उच्च शिक्षित होना भी मापदंड नहीं है किसी पुरुष के सभ्य और संस्कारी होने का क्योंकि शिक्षित पुरुष भी भेड़िये की खाल में स्त्रीयों का चारित्रिक और मानसिक हनन व शीलभंग नज़र करते हुए नज़र आ रहे हैं हर क्षेत्र में।
यहाँ विरोधाभास देखिए न... स्त्रीयों का शिक्षित व सशक्त होना ज़रूरी है स्वयं के अस्तित्व व अस्मिता को बचाए रखने हेतु किंतु पुरूष का शिक्षित, सशक्तऔर सभ्य होने के बावजूद भी स्त्रियों के साथ अमर्यादित व्यवहार करना भी विडंबना ही है समाज की बनिस्बत जो अशिक्षित हैं उनकी तुलना में।

गांधी जी के जीवन-दर्शन को पढ़ना सत्य, अहिंसा, स्वराज, स्वदेशी व मानव जीवन मुल्यों को समझना है इन्हीं मानव मुल्यों के अवांतर गांधी जी का स्त्रियों के प्रति अटूट सम्मान और आस्था को भी समझना है। गांधी जी के भीतर एक स्त्री जैसा सुकोमल व संवेदनशील मन भी है जो स्त्रियों के मन और उनकी उपस्थिती को भली भांति पढ़ लेता है। गांंधी जी स्त्रियों के प्रेरणास्रोत भी हैं और प्रेरणादायक भी हैं।

गांधी जी नहीं चाहते थे कि स्त्रियाँ हमेशा चूल्हे चक्की और बच्चों में फँसी रहें, उनका मत था कि स्त्रियाँ स्वावलंबी बनें उनके अपने विचार हों, अपनी एक स्वतंत्र सोच हो, किसी भी विमर्श में अपने विचारों को रखने के लिए स्वतंत्र हों इसीलिए गांधी जी ने उनकी शिक्षा और उनके विकास पर जोर दिया। गांधी जी चाहते थे स्त्रियाँ चूल्हे-चक्की, घर परिवार से एक क़दम आगे बढ़कर अपनी सोच और अपने स्थिति का आकलन कर उन्नयन करें यही कारण था कि स्त्रियों को घर-घर में चरखा चलाने और सूत कातने की सलाह गांधी जी ने हर स्त्री को दी जिससे उनका स्वयं का ही नहीं समाज और देश का भी आर्थिक विकास हो।

विधवा स्त्री और बाल विवाह को भी गांधी जी ने समाज में व्याप्त विसंगति और कुरीति मानकर इस प्रथा का मुखर होकर विरोध किया। उनके अनुसार पुरुष अपनी स्त्री के मर जाने पर विवाह कर सकता है स्त्री क्यों नहीं?
वैध्व्य से उबरकर स्वच्छंद जीवन जीना स्त्री का भी परम अधिकार होना चाहिए।

महात्मा गांधी का सरोकार हमेशा स्त्रियों के अधिकारों के पक्ष में लड़ना रहा महात्मा गांधी चाहते थे कि स्त्री-पुरुष के मध्य सहजता का संबंध हो जहाँ दोनों के अधिकार समान हों, जहाँ न कोई तुच्छ हो न कोई श्रेष्ठ हो इसीलिए महात्मा गांधी घरों में अविभावकों से अपने लड़के-लड़की में समानता का व्यवहार रखने की सीख देते थे। घरों में लड़कों को भी काम करने की आदत सिखाने पर जोर देते थे ताकि यह व्यवहार आगे चलकर स्त्री-पुरुष के मध्य खाई पाटने का काम करें।

गांधी जो को स्त्रियों का पर्दे में रहना और पुरुषों का उनके विचारों उनकी मन:स्थिती और उनकी परेशानियों से विरत होना गांधी जी को दुखी करता था अतः स्त्रियों की परेशानियों को जानने के लिए कस्तुरबा को गाँव की बस्तियों और झोपड़ियों के भीतर तक उनकी सही स्थिती के आकलन के लिए भेजा करते थे।

गांधी जी ने अपने समय में समाज में स्त्रियों की कमज़ोर व विद्रूप दशा को महसूस कर स्त्रियों के सशक्तिकरण का पुरज़ोर समर्थन करना असल में पुरुष और स्त्री वर्ग के मध्य विभेदीकरण नहीं है। स्त्रियों की पुरुष समाज में बदहाल स्थिती और उनकी असमानता को लेकर गांधी जी का विरोध असल में एक यात्रा है मनुषत्व व इंसानियत की सही परिभाषा निर्धारित करने की।

किसी भी देश के विकास का आकलन इस बात पर किया जा सकता है कि वहाँ कि स्त्रियों की मनोदशा और स्वास्थ्य कैसा है? और किसी देश के समाज का स्तर इस बात पर निर्भर करता है कि स्त्रियों की दशा का परिवार में उस स्त्री की स्थिती कैसी है?
किंतु भारत जैसे देश में स्त्रियाँ न अपने खोल में सुरक्षित हैं न अपने खोल से बाहर आकर।

आज भारत के अधिकांश भूभाग की स्त्रियाँ स्वावलंबी हैं, शिक्षित भी हैं कुछ क्षेत्रों को छोड़कर किंतु फिर भी मुस्कराहट नहीं है उनके चेहरों पर एक ख़ौफ़ और भय की परत हमेशा चढ़ी रहती है उनके चेहरों पर, किंतु अपने समकक्ष पुरुषों के आसपास रहने से भी क्यों स्वतंत्र भारत की स्त्रियों में ख़ौफ़ की मानसिकता उपज रही है आज के पुरुष के प्रति जहाँ शैक्षिक रूप से सशक्त व स्वावलंबी होकर भी पुरुष की उपस्थिती डरा रही है उनके अस्तित्व को।
यह तो ज़िक्र भर है पढ़े लिखे व सभ्य समाज के परिदृश्य का, लेकिन जहाँ ज़िंदगी ठहरी हुई है, अज्ञानता है, उन्नति के रास्ते बंद हैं चारों तरफ़ से उस समाज में स्त्रियों के जीने की कवायद पुरुषों की छाया में और वह कितनी सुरक्षित हैं उनके साए में यह अत्यंत चिंताजनक है। आए दिन बलात्कार और उत्पीड़न की घटनाएँ शरीर में कंपकंपी और सिहरन छोड़ जाती हैं।

स्त्री की दुर्दशा और उसके विकास विकास के लिए गांधी जी का प्रयास उतना ही है जितना स्वराज के लिए उनका अनथक आंदोलन। अस्पृश्यता, पाशविकता के ख़िलाफ़ थे गांधी जी जिसके उन्मूलन की नींव उन्होंने अपने कालखंड में पहले ही रख दी थी।
आज विकास हुआ है स्त्रियाँ का, स्वावलंबी हैं, सशक्त हैं, शिक्षित हैं... तो फिर आज भी वर्ग भेद, बलात्कार अस्पृश्यता और पाशविकता क्यों? क्या सही मायने में हमारे देश में स्त्रियों का कद बड़ा हुआ है गांधी जी के स्वतंत्र भारत की स्त्रियों का? यह शायद हमें अपने-अपने स्तर पर जानने की ज़रूरत है।


लेखन तिथि : 2020
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें