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ग़रीब की बेटी (कविता)

उलझे हुए बाल,
रूखे ख़ुश्क गाल।
सूनी सी आँखें,
रोटी का सवाल।

विद्यालय से दूर,
श्रम को मजबूर।
बासी दाल-भात,
ताड़ना भरपूर।

अरमान दबा कर,
घरों में काम कर।
पिता को थमाती,
कमाई जोड़ कर।

सुखों से अंजान,
उपेक्षित संतान।
भाई-बहन पाले,
हाय नन्ही जान।

जीवन है बेरंग,
अभावों के संग।
माता-पिता रहे,
ग़रीबी से तंग।

स्वप्न कैसे पले,
फ़ुर्सत नहीं मिले।
पूरा दिन खटती,
मन अँधेरे तले।।


रचनाकार : सीमा 'वर्णिका'
लेखन तिथि : 12 सितम्बर, 2021
            

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