ग़मों में ज़िंदगी का क्या करेंगे,
लबों की ख़ामुशी का क्या करेंगे।
मुहब्बत डायरी में लिख चुके हैं,
अमाँ अब शाइरी का क्या करेंगे।
रक़ीबों से उसे हम छीन भी लें,
मगर ऐसी ख़ुशी का क्या करेंगे।
हमारी ज़िंदगी में तीरगी है,
मियाँ हम रौशनी का क्या करेंगे।
शराफ़त ख़ानदानी है हमारी,
बताओ हम किसी का क्या करेंगे।
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