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घोड़े हवाओं के (नवगीत)

कतर दिए हैं पर
वादे वफ़ाओं के।

तन पर पड़ते
जाड़े के कोड़े।
हैं गद-गद अलाव
थोड़े-थोड़े।।

दौड़ रहे सरपट
घोड़े हवाओं के।

मंत्र मुग्ध सी
निगोड़ी शाम है।
डाकिया ले आया
पैग़ाम है।।

कंठ अवरुद्ध हैं
कोकिल सदाओं के।


लेखन तिथि : 16 अक्टूबर, 2019
            

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