कतर दिए हैं पर
वादे वफ़ाओं के।
तन पर पड़ते
जाड़े के कोड़े।
हैं गद-गद अलाव
थोड़े-थोड़े।।
दौड़ रहे सरपट
घोड़े हवाओं के।
मंत्र मुग्ध सी
निगोड़ी शाम है।
डाकिया ले आया
पैग़ाम है।।
कंठ अवरुद्ध हैं
कोकिल सदाओं के।
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