द्वापर युग में था हुआ, विष्णु रूप अवतार।
हुए अवतरित कृष्ण थे, मथुरा कारागार॥
निशि वश हो वसुदेव जी, लेकर सिर पर श्याम।
बचा कंस के कोप से, पहुँचे गोकुल धाम॥
गोकुल में वसुदेव जी, गए नंद के द्वार।
नंद यशोदा थे मुदित, केशव रूप निहार॥
भाद्र मास की अष्टमी, लिया जन्म रणछोड़।
पर्व मने जन्माष्टमी, माखन मटकी तोड़॥
मुरलीधर का तेज़ है, यहाँ प्रीत की छाँव।
कण-कण में गोपाल है, ऐसा गोकुल गाँव॥
गूंजे गोकुल की गली, बंसी तेरी तान।
गिरधर केशव नाम से, गोकुल की पहचान॥
नारायण भगवान का, अष्टम है अवतार।
ब्रज के गोपीनाथ की, लीला अपरंपार॥
मोर पंख सिर पर सजे, मुरलीधर है नाम।
घूमें गोकुल गाँव में, मिलते चारों धाम॥
ब्रज की सारी गोपियाँ, पूछे यही सवाल।
मोहन माखन चोर है , मैया तेरौ लाल॥
जग में तेरी साँवरे, एक अलग है बात।
सखियाँ सारी बावरी, बात करे दिन रात॥
कृष्ण संग है राधिका, हाथों में है हाथ।
वृंदावन की हर गली, घूमें गोपीनाथ॥
दौड़ी सुनकर जब सखी, बनी क़दम की ताल।
नटखट तेरे श्याम की, बंसी बजे कमाल॥
ताल, तटी, नद, निर्झरी, मिलकर गाए गीत।
मेघ, पवन, भू, व्योम है, धरणीधर के मीत॥
कान्हा तेरी प्रीत में, उपज रहा यह गान।
तुम ही मेरी नाद लय, तुम ही मेरी तान॥
कृष्ण मुरारी मोह में, सुध बुध रहा न भान।
तुम ही पहली प्रीत हो, तुम अन्तिम सोपान॥
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