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गुब्बारे (कविता)

हवा जब भर जाती गुब्बारे के अंदर, उड़ जाता वह झट से ऊपर,
कहता गुब्बारा हम से यही, झाँक लें ज़रा हम ख़ुद के अंदर।
बाहर की नहीं, अंदर की हवा की ताक़त ले जाती गुब्बारे को ऊपर,
बाहर के नहीं, अंदर के भाव करते हमारा मार्ग प्रखर।

गुब्बारों से आज की मैंने, अपने मन की कुछ कुछ बातें,
ज़िंदगी में हम उठ सकते बहुत ऊपर, अगर खोलें हम भावों की परतें।
बाहर का मौसम गुब्बारे को खिंचता, अंदर की हवा दिखाती राह,
हमें भी बढ़ना हो आगे अगर, तो लेनी होंगी अंतर्मन की थाह।

हवा को था बड़ा घमंड ख़ुद पर, गुब्बारे ने झट कर लिया क़ैद,
मन की शक्ति जब होती तेज, लेतें हम झट मंज़िल को भेद।
गुब्बारा हमें यही सिखाता, पहचान लें अपने अंदर की शक्ति,
शुद्ध हो अगर मन के भाव, हो ही जाती प्रभु से भक्ति।

देखता हुँ जब गुब्बारों के, सैकड़ों हज़ारों रंग,
पनपने लगते मधुर भाव मन में, हिलोरे लेती उमंग।
भरते जब हम गुब्बारे में हवा, वह फुला नहीं समाता,
बतलाता गुब्बारा हमें यही, भावों का जीवन से गहरा है नाता।

उठना हो ज़िंदगी में ऊपर, देखो जीवन में गुब्बारों की बानगी,
बढ़ना हो सही राह पर अगर, बनाओ अच्छे भावों की मीठी चाशनी।
गुब्बारे के अंदर की ताक़त, जैसे गुब्बारे को ऊपर ले जाती,
हमारे अंतर्मन की ताक़त, हमें सही मार्ग जीवन का दिखलाती।

अंदर भरी हवा की ताक़त, ले जाती गुब्बारे को मीलों दूर,
अंदर के भाव हमें कर देतें, यूँ हीं भक्ति में चूर।
हवा न हो अंदर अगर, कैसे गुब्बारा ऊपर को जाए?
भाव न हो मन में सही अगर, कैसे इंसान सफलता पाए?

गुब्बारे जब उड़ते आसमान में ऊपर, मिलती एक अलग पहचान,
हम भी जब होते अग्रसर, सफलता का मिलता सोपान।
भरी हो पूरी अंदर हवा, बाहर की हवा कुछ बिगाड़ न पाती,
भाव मन में हो मज़बूत अगर, बाहरी बाधाएँ राह रोक नहीं पाती

मेरी इन बातों पर आज, करना आप सब गहरा मनन,
उड़ालो मन के सारे गुब्बारे, ख़ुशियों से भर लो जीवन का चमन।
चलना, उड़ना सही राह पर, सच्चाई का करना आचमन,
लड़ना बाहरी शक्तियों से, मज़बूत रखना अपना अंतर्मन।


लेखन तिथि : 29 नवम्बर, 2021
            

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