देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

गुनगुनी धूप (गीत)

गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी,
फिर से पीहर में गोरी लजाने लगी। 2

अब सुहानी लगे सर्द की दुपहरी,
मौसमी मयकशी है ये जादू भरी।
ठंडी-ठंडी हवा दिल चुराने लगी,
गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।
फिर से पीहर... 2

पायल ने छेड़े हैं रून झुन तराने,
दर्पण से दुल्हन लगी है लजाने।
याद उसको पिया की सताने लगी,
गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।
फिर से पीहर...2

सर्द का मीठा-मीठा सुहाना समा,
फूल भौंरें हुए हैं सभी ख़ुशनुमा।
रुत मोहब्बत की फिर से है छाने लगी,
गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।
फिर से पीहर... 2

फूलों पे यौवन है फसलों में सरगम,
भँवरों का गुंजन है मधुबन में संगम।
प्यार के रंग तितली सजाने लगी,
गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।
फिर से पीहर... 2

कहीं पर प्रणय तो कहीं है प्रतीक्षा,
कहीं दर्द बिरहन की लेती परीक्षा।
प्रेम का गीत कोयल सुनाने लगी,
गुनगुनी धूप फिर से है भाने लगी।
फिर से पीहर... 2


लेखन तिथि : 1 नवम्बर, 2020
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें