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हाँ मैं मज़दूर हूँ (कविता)

रहता अधिकतर अपने परिवार से दूर हूँ,
चिंता रहती घर के ख़र्चे की हाँ मैं मज़दूर हूँ।

करता जी-हुज़ूरी मालिक की मेरा काम चलता है,
मेरी मज़दूरी से ही ख़र्च सुबह-शाम चलता है।

मिले हर रोज़ काम मुझे आराम नहीं,
चिंता सताती मुझे गर मिलता काम नहीं।

परिवार के भरणपोषण के लिए मुझे काम चाहिए,
न कोई इच्छा बस दाल-रोटी सुबह-शाम चाहिए।

गर्मी की तपिश, सर्दी की ठिठुरन मुझे हरा नहीं पाती,
न रहें बच्चे भूखे ये घनघोर बारिश भी डरा नहीं पाती।

हाँ सुबह से शाम तक काम से मैं हो जाता चूर-चूर हूँ,
फिर भी चाहता हूँ हर रोज़ काम हाँ मैं मज़दूर हूँ।

मेरी मज़दूरी ही मेरे जीवन का सार है,
इसी से चलता परिवार जो मेरा संसार है।


लेखन तिथि : 21 मई, 2021
            

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