हर हर शंकर भोले दानी।
देवासुर सब कीर्ति बखानी॥
द्वादश ज्योतिर्लिङ्गहि रूपा।
त्रिलोकेश्वर रुप अनूपा॥
महादेव भुवनेश्वर लोका।
कैलाशी हरते सब शोका॥
संकट विपद हरे दुख माहीं।
हर हरि कृपा बिन कहँ छाँही॥
सब देवों के देव त्रिलोकी।
बाघम्बर शिवधाम अलौकी॥
महाकाल शंकर अरि हन्ता।
करें भक्ति देवासुर सन्ता॥
विश्वनाथ शिव मुक्ति प्रदाता।
बैद्यनाथ सन्तति सुख पाता॥
ओंकारेश्वर गौरी रमणा।
महाकाल संकट सब हरणा॥
सोमनाथ त्रिदेव स्वरूपा।
त्र्यम्बकेश्वर पूज्य जन भूपा॥
नागेश्वर शिवभक्त अनूपा।
अमरनाथ हिमराजहि भूपा॥
नंदीश्वर केहि रूप बखाना।
शिव ताण्डव विकराल समाना॥
कृपासिंधु हर शिव प्रभुताई।
विनत भक्ति पूजित सुखदाई॥
उमापति पशुपति तिहुँ लोका।
रोग शोक गम मद हर शोका॥
हिमजा गिरिजा रत हर चरणा।
जगदम्बा शिव वामा रमणा॥
सतीनाथ रूप विकराला।
नीलकण्ठ पी विष ज़हरीला॥
भूत प्रेत गण मीत सुहाना।
बोलबम हर चहुँ जयकारा॥
केदारनाथ दुर्गम संसारा।
जटाजूट शिव अहि गलहारा॥
उमारमण शरणागत शंकर।
वृषवाहन भोले हर कंकर॥
शूलपाणि डमरूधर बाबा।
नाग पंचमी दूध पिलाई॥
दुख हर्ता हर भक्ति सुहाई।
कर आरत उमापति भाई॥
ब्रह्मा विष्णु भजे कैलाशी।
भष्मराग शिव मरघटवासी॥
कठिन साधना इह तिहुँ लोका।
आराधन शिवताण्डव श्लोका॥
शूलपाणि दसकंधर मुदिता।
बार-बार दश शीश चढ़ाई॥
किया कृपा बैद्यनाथ गोसाईं।
महिमा अद्भुत शिवा कृपाला॥
शरणागत हम शिवा भवानी।
पल्लीश्वर शिव दीन दयाला।
दोहा:
हर शिव शंकर हर विपद, हरिहर नाथ त्रिलोक।
हे देवों में देव शिव, हरो रोग मद शोक॥
सावन पावस आगमन, भरे तोय हरिद्वार।
काँवर टाँगें जल चढ़े, भव सागर हों पार॥
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