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हे हास्य व्यंग के महारथी! (कविता) Editior's Choice

हे हास्य व्यंग के महारथी!
हे कला जगत के पुष्परत्न!
है नमन तुम्हें करता भारत,
मुखमण्डल तुम ही हर्ष यत्न।

तुम स्वयं तालियों की आहट,
तुम सम्बन्धों के बने बन्ध।
तुम हँसी ठिठोली के नायक,
तुम ही विनोद की थे सुगंध।

तुम विनम्रता की प्रतिमूर्ति,
तुम चिरपरिचित थे अट्टहास।
तुम नम आँखों की बने हँसी,
तुम स्वयं ठहाकों का प्रयास।

तुम राजनीति पर प्रसन्नता,
तुम आम आदमी का परिचय।
तुम ठेठ यहाँ अवधी भाषा,
तुम व्यंग्य काव्य के थे संचय।

तुम कानपुर की थे मस्ती,
तुम थे अभिनय के महाधनी।
तुम हसगुल्लों का फव्वारा,
मुस्कान ही वह पहचान बनी।

तुम लालू, बच्चन बने कभी,
तुम स्वयं गजोधर भैया थे।
तुम आवाज़ो के महाधनी,
तुम रेल का इंजन, पहिया थे।

जीवन की गाड़ी में तुमने,
देखे अगणित संघर्ष यहाँ।
किंतु सब टाल दिया तुमने,
लोगों को दिया क्षण हर्ष यहाँ।

विश्वास नहीं होता क्षण भर,
तुम आज धरा से हुए विदा।
जाते-जाते क्यों रुला गए,
जो कभी न रहते यहाँ जुदा।

ऐसे इस हास्य के नायक का,
इतनी जल्दी क्यों जाना था।
ऐसे क्यों छोड़ तुम चले गए,
तुम्हें विश्व को अभी हँसाना था।

तुम गए नहीं तुम जीवित हो,
हर दिल में तुम सदा रहोगे।
जब-जब हास्य व्यंग होगा तब,
तुम धारा बन सदा बहोगे।


लेखन तिथि : 21 सितम्बर, 2022
कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव पर श्रद्धांजलि कविता।
            

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