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हो जीवन उजियार (दोहा छंद)

मार्ग सुलभ है पाप का, बड़ा भयावह अन्त।
दुर्गम राहें धर्म का, सत्य विजय भगवन्त।।

कठिन परीक्षा सत्य की, बलि लेती अविराम।
मिले न्याय सुन्दर सुखद, धर्म विजय सुखधाम।।

सुखद प्रभा होती दिवा, अन्त रात्रि घनघोर।
पुनः धरा नव आश बन, अरुणिम मंगल भोर।।

रोग शोक हर पाप को, आंजनेय हनुमान।
सियाराम मंगल करें, दें वैभव सम्मान।।

बजरंगी हर व्यथा को, दीन हीन मज़दूर।
भूखे बच्चे साथ में, जाने को मजबूर।।

छँटे कालिमा त्रासदी, हो जीवन उजियार।
कवि निकुंज अभिलाष मन, बने सुखद संसार।।


            

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